भारतीय भाषाओं में पारस्परिकता

भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिकता बढ़ाने में, भाषाई सद्भाव द्वारा सभी भारतीय भाषाओं के विकास में और हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं से जोड़ने वाली माध्यम की भाषा के रूप में विकास के दौर में आगे बढ़ने में ऐसे कार्यक्रम प्रेरक हैं, उत्तेजक हैं। ‘नई धारा’ में छपना ही हम दक्षिण भारतीय लेखकों के लिए गौरव की बात है, फिर वहाँ से पुरस्कृत होना तो महागौरव है!

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आलोचना की विश्वसनीयता

हिंदी के ऐतिहासिक महत्त्व की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ 2020 का रचना सम्मान’ प्राप्त कर गौरव का अनुभव कर रहा हूँ। इस सम्मान के योग्य मुझे समझा गया, इसके लिए आभार व्यक्त करता हूँ। इस अवसर पर साहित्य-मूल्यांकन विशेषकर समकालीन आलोचना पर दो बातें कहना चाहता हूँ।

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अफगानिस्तान का सिनेमा

अफगानिस्तान के बारे में इस समय सारी दुनिया में चर्चा हो रही है। वहाँ तालिबान का कब्जा हो चुका है और सारी दुनिया अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर चिंतित है। अफगानिस्तान के सिनेमा के बारे में दुनिया भर में बहुत कम चर्चा होती है। आश्चर्य है कि भारत में भी इस बारे में कभी कोई खास बातचीत नहीं सुनी गई है जबकि अफगानिस्तान के साथ भारत के ऐतिहासिक और पौराणिक रिश्ते बहुत गहरे रहे हैं। र

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भारतीय साहित्य और वाचिक परंपरा

प्राचीन भारतीय साहित्य का बहु भाग बोलचाल के शब्दों का व्यक्त रूप है। संरक्षण की दृष्टि से वह वाचिक परंपरा की संपत्ति है। वेदों का संरक्षण एक अक्षर की भी क्षति हुए बिना युगों से वाचन (पाठ की) कठिन व जटिल व्यवस्था द्वारा किया गया। भारतीय इतिहास में लेखन का परिचय विदेशियों के प्रभाव से बाद में हुआ।

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‘मदर इंडिया’ उपेक्षित समाज की त्रासदी

मेयो ने भारतीय समाज में व्याप्त जाति और पुरुष वर्चस्ववाद, धार्मिक अंधविश्वास और पाखंडवाद, असमानता, अस्वच्छता और इन सबका मूल कारण अशिक्षा जैसी जिन समस्याओं को ‘मदर इंडिया’ के माध्यम से विश्व समाज के समक्ष प्रस्तुत किया, वे किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान हैं। स्त्री और दलितों को उन समस्याओं से आज भी जूझना पड़ रहा है।

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श्यौराज सिंह बेचैन दलित दृष्टि के कहानीकार

समय के अनुसार कहानियाँ भी बदलती हैं और कहानी के पात्र भी बदलते हैं। कहानी की सार्थकता भी यही है। हर युग के भीतर संघर्ष की नई दिशाएँ, अनुभव का नया शेड, नया भाष्य भी होता है।

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