भारतीय साहित्य और वाचिक परंपरा

प्राचीन भारतीय साहित्य का बहु भाग बोलचाल के शब्दों का व्यक्त रूप है। संरक्षण की दृष्टि से वह वाचिक परंपरा की संपत्ति है। वेदों का संरक्षण एक अक्षर की भी क्षति हुए बिना युगों से वाचन (पाठ की) कठिन व जटिल व्यवस्था द्वारा किया गया। भारतीय इतिहास में लेखन का परिचय विदेशियों के प्रभाव से बाद में हुआ।

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‘मदर इंडिया’ उपेक्षित समाज की त्रासदी

मेयो ने भारतीय समाज में व्याप्त जाति और पुरुष वर्चस्ववाद, धार्मिक अंधविश्वास और पाखंडवाद, असमानता, अस्वच्छता और इन सबका मूल कारण अशिक्षा जैसी जिन समस्याओं को ‘मदर इंडिया’ के माध्यम से विश्व समाज के समक्ष प्रस्तुत किया, वे किसी न किसी रूप में आज भी विद्यमान हैं। स्त्री और दलितों को उन समस्याओं से आज भी जूझना पड़ रहा है।

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श्यौराज सिंह बेचैन दलित दृष्टि के कहानीकार

समय के अनुसार कहानियाँ भी बदलती हैं और कहानी के पात्र भी बदलते हैं। कहानी की सार्थकता भी यही है। हर युग के भीतर संघर्ष की नई दिशाएँ, अनुभव का नया शेड, नया भाष्य भी होता है।

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विदेशी कवियों के हिंदी अनुवाद–(स्थिति और चुनौतियाँ)

अनुवाद दो भाषाओं को जोड़ने वाला पुल है। अनुवाद के द्वारा ही हम किसी दूसरे देश, प्रांत के साहित्य, कला, संस्कृति व विज्ञान से परस्पर परिचित हो सकते हैं।

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कवि-परंपरा में कैलाश वाजपेयी

कैलाश वाजपेयी उसी परंपरा के कवि हैं जिन्होंने कविता में वह सब कहने की चेष्टा की है जो बीसवीं शताब्दी के मनुष्य के साथ घटा है।

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आदिम रसगंधों के गायक रेणु

हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में फणीश्वरनाथ रेणु का आगमन एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इन्होंने कथा साहित्य को लोकजीवन के अपार वैभव से जोड़कर उसमें निहित संभावनाओं का अधिकतम दोहन किया है।

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