दादाजी के सपने

(दादाजी कमरे में चहलकदमी कर रहे हैं। उनके चेहरे पर गुस्सा है। सामने अमन आता दिखाई पड़ता है। उनका गुस्सा फूट पड़ता है।) दादाजी - कहाँ था इतनी देर से? अमन - आज तो गजब हो गया, दादाजी!

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चंदा मामा के गाँव

शुभम–तुम लोग कहाँ गए थे, भैया? अमन–चन्दा मामा के गाँव घर। शुभम–मुझे और हर्ष भैया को छोड़कर अंशु भैया के साथ चले गए न? मामा हमारे बारे में कुछ पूछ…

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वे अभी भी क्वाँरी हैं!

रेखा– (हल्की हँसी) कवि और कलाकार सचमुच पागल होते हैं, यह बात तो तुम्हें देखकर ही मान गई हूँ माधव!

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माफ कीजिएगा!

शहर के मशहूर बिजनेसमैन श्री बिसारिया जी के यहाँ से आज उनका निमंत्रण था। मैं समझ बैठा था कि वे यहीं रहते हैं। खैर, माफ कीजिएगा...कृपया टिकट लौटा दें। समय कम है।

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कवि-पत्नी

लो, नभ-मंदिर के कंचन-पट खोल, सुंदरी ऊषा आती अरुणांजलियों से प्रकाश की किरणों का अमृत बरसाती वनतरुओं के नीड़ों में है जाग पड़ा मंगल कल-कूजन नव रसाल-मंजरियों का है

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