पागलखाना

नहीं, नहीं, नहीं! पाप लगेगा। हमारा धर्म अहिंसा का है। हाँ, वैसे खून के बदले में उसे बेच कर सोना मिलता हो, तो एक-एक बूँद निकाला भी जा सकता है, मगर जरा आहिस्ता-आहिस्ता।

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श्री शरत् चंद्र

इस प्रथम अंक में शरत् की उस मानसिक स्थिति का चित्रण है जब वह आत्म प्रकाश की दिशा ढूँढ़ रहे थे। बहुमुखी प्रतिभा हर तरफ जोर आजमा कर अपना रास्ता बना रही थी।

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सियाना मालिक

सियाना मालिक नौकर रखता है, तो पहले उसका नाम और अता-पता पूछ लेता है। न केवल यह बल्कि उसकी पूरी-पूरी जाँच कर लेता है।

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जिंदगी का राज

स्मरण रहे कि उन दिनों शाहजहाँ को लकवा मार गया था इसलिए पूरे नाटक में वह अपने शरीर के आधे भाग से कोई भावभंगिमा नहीं दिखला सकता। बीच-बीच में उसका लकड़ी वाला हाथ धीरे-धीरे हिल जाता है और उसी ओर के होठ फड़क उठते हैं। आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं और वह निरुपाय, हतबुद्धि-सा दर्शकों को देखता है।

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विष-कन्या

वामदेव, तुम ब्रह्मचारी हो, तपस्वी हो। तुमने अपनी जिंदगी की बागडोर जिस रास्ते से मोड़ दी है, वह मुझसे बहुत दूर है। मैं देवदासी हूँ, नर्तकी हूँ, औरत हूँ।

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नीली झील

इस रूपक का वातावरण सर्वथा ऐंद्रजालिक होते हुए भी इसकी समस्या आज की यथार्थ समस्या है। वह समस्या आज मानवीय संस्कृति की प्रगति के सामने एक प्रश्नचिह्न बन कर खड़ी हो गई है।

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