रोना

स्वस्थ जीवन के लिए हँसना-रोना दोनों जरूरी है, परंतु पता नहीं क्यों महागुरुओं ने ‘रुदनयोग’ को योग-चर्चा में शामिल नहीं किया

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स्त्री सशक्तिकरण : दशा, दिशा एवं संभावनाएँ

विकास के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण से अधिक प्रभावी तरीका कुछ नहीं है। इस बयान से अधिक सटीक तरीके से महिलाओं की क्षमता का परिचय और कोई नहीं हो सकता।

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पंडित विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध

ललित निबंध का प्रसंग आते ही मेरे सामने पद्मभूषण पंडित विद्यानिवास मिश्र की निर्मल छवि उभर आती है। क्या दिव्य व्यक्तित्व की आभा थी उनमें! बोलते तो उनकी जुबान से पूरबी की संस्कृति झरने लगती और लिखते तो जैसे उनके अथाह ज्ञान का सोता देसी संस्कृति में घुल-मिलकर असंख्य प्राणियों के तप्त हृदय को संतृप्त कर देता! पहली बार उनसे वर्ष 1988 में अपने गुरु आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा के सौजन्य से पटना स्थित उनके ही निवास पर मिला था।

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प्रेम : तब और अब

‘प्रेम का उदय’ आँखों से और आँखों में ही यह ‘अस्त’ भी हो जाता है– ‘होता है राज़-ए-इश्क-ओ-मुहब्बत इन्हीं से फाश आँखें जुबाँ नहीं है, मगर बेजबाँ भी नहीं।’

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पहाड़ों के बीच

हल्के हरे रंग और सुनहरे रंग की पत्तियों के बीच झाँकते, मुस्कुराते, खिड़की से आती हवा के झोंकों से सिहरते इन फूलों के बीच दिन में न जाने कितनी बार झाँक उठती है अंजलि।

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चतुर्विध तपस्या और चतुर्विध मुक्ति

सर्वांगीण शिक्षा का अनुशीलन करने के लिए–उस शिक्षा का जो हमें अतिमानसिक उपलब्धि की ओर ले जाती है–चार प्रकार की तपस्याओं और चार प्रकार की मुक्तियों की आवश्यकता है।

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