हिंदी के कहानी-साहित्य के इतिहास के साथ एक मजाक
आज कहानी-लेखन के साथ-साथ, कहानी-संबंधी चर्चा-परिचर्चा का जो सिलसिला बँध गया है, उससे अपने को एकदम तटस्थ रख पाना किसी भी जागरूक कहानीकार के लिए न तो संभव है, न शुभ ही।
आज कहानी-लेखन के साथ-साथ, कहानी-संबंधी चर्चा-परिचर्चा का जो सिलसिला बँध गया है, उससे अपने को एकदम तटस्थ रख पाना किसी भी जागरूक कहानीकार के लिए न तो संभव है, न शुभ ही।
जब कभी भी ‘रास्ता’ शब्द सुनता हूँ, तो मुझे गाँव की वे पगडंडियाँ याद आ जाती हैं, जो गाँव की धूल भरी जमीन से निकलकर आम के बगीचों या लहलहाते खेतों में खो जाती हैं। शायद यह मेरे बचपन का संस्कार है, जो अपनी जगह आज भी सुरक्षित है।
काव्य और मंत्र दोनों की ही भित्ति, आश्रय-आधार है वाक्य,...वाक्य का वजन जब अधिक हो जाता है, वह चाहे कितना ही क्यों न हो, तब वह काव्य की कोटि में चला जाता है। और वाक्य का वजन जब संपूर्ण रूप से वाक्य के आश्रयी का वजन हो जाता है तब वह बन जाता है मंत्र!
कला का मूल है मनुष्यत्व। मनुष्यत्व की सिद्धि तर्क का प्रसंग नहीं है–तर्क में इतना तात्विक सामर्थ्य नहीं है।
बरसात क्या आ गई गाँव में नया जीवन आ गया है। कोई टाट के थैले की तिकोन ‘घोमची’ ओढ़ कर और कोई अपने शरीर पर के कुरते और बंडी को भी उतार कर, बरसते पानी मैं अपने-अपने काम में संलग्न हो उठे हैं।