विवेकी राय के नाम 10 पत्र

मैं इधर तीन-चार दिनों से आपकी ‘सोनामाटी’ में इस प्रकार डूबा था कि सभी कम आवश्यक कार्य मुल्तवी कर दिए थे

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‘आलोचना’ के संबंध में

सुना है कि राजकमल प्रकाशन, दिल्ली की ओर से समाचार-पत्रों में घोषणा की गई है कि आगे से ‘आलोचना’ (त्रैमासिक) का संपादन, मेरे स्थान पर, चार लेखकों का एक संपादकमंडल प्रयाग से किया करेगा।

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हरिऔध जी का एक पत्र

जब तक ब्रजभाषा किसी प्रांत की भाषा है, तब तक वह किसी के मारने से मर नहीं सकती। उसमें अब भी कविता होती है, और आगे भी होती रहेगी। उसका माधुर्य भी सर्वमान्य है।

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हरिऔध जी का पत्र

छायावादी कवि कहा करते हैं, प्राचीन कवियों में न अनुभूति है, न सहृदयता। भावुकता तो उनमें छू नहीं गई है। उनकी दृष्टि में केशव, देव, बिहारी सब तुच्छ हैं, वे इन महाकवियों को फूटी आँख से नहीं देख सकते।

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धर्म और साहित्य

किसी धर्म का अपना साहित्य नहीं होता और हो भी नहीं सकता। इसलिए कि धर्म तो बँधे-बँधाए नियमों का नाम है, उसमें इतनी लचक कहाँ जो साहित्य जैसी विशाल वस्तु को अपने अंदर समेट कर रख सके।

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 सदाचार से ही सुख सुलभ होगा
Acharya Shivpujan Sahay

सदाचार से ही सुख सुलभ होगा

महात्मा गाँधी सबकी रामबाण दवा बतला गये हैं– राम-नाम, ईश्वर-प्रार्थना। पर ईश्वर-प्रार्थना अब किसी को नहीं सुहाती। सब लोग ‘राम-नाम में आलसी, भोजन में हुसियार’ हो गए हैं।

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