कबीराना अंदाज़ के दोहे
संग्रह के दोहों में वैविध्य है। कहीं प्रतिरोध के स्वर बुलंद किए गए हैं, तो कहीं सत्ता-व्यवस्था पर करारी चोट की गई है। कुछ दोहे नीतिपरक हैं, तो कुछेक राजनीति, शिक्षा, संस्कृति और जीवन-दर्शन से जुड़े हुए हैं।
संग्रह के दोहों में वैविध्य है। कहीं प्रतिरोध के स्वर बुलंद किए गए हैं, तो कहीं सत्ता-व्यवस्था पर करारी चोट की गई है। कुछ दोहे नीतिपरक हैं, तो कुछेक राजनीति, शिक्षा, संस्कृति और जीवन-दर्शन से जुड़े हुए हैं।
कहानी दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगों पर और ओछी सोच रखने वालों पर व्यंग्य कसती है। ‘मेहनताना’ कहानी में एक आदर्शवादी शिक्षक सुधीर के जीवन में आने वाली कठिनाइयों का यर्थाथ चित्रण किया गया है
आजकल की पीढ़ी के कुछ युवाओं के कटु यथार्थ हैं, जिनसे खालिस देशी माँ-बाप की देशी मानसिकता को टकराना पड़ रहा है।
संग्रह में शामिल कहानी ‘सवाल दर सवाल’ इस देश के गाँवों में रोज होने वाली ऐसी घटनाओं को हमारे सामने बेपर्द करती है
शैली की बात आई है तो इसी संग्रह की ‘प्रभु बोर हो रहे हैं’ रचना याद आ रही है। लेखक ने कल्पना की है कि कोरोना का प्रोटोकॉल क्षीरसागर तक पहुँच गया है
यह ‘तलवार की धार पे धावनो है’ जैसा ही होता है। अनिरुद्ध जी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ते।