श्री ‘अंचल’ का उपन्यास-साहित्य
सौंदर्य, प्रेम और प्रगति के कवि अंचल (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’) के उपन्यासों में भी साम्यवादी चेतना का प्रकटीकरण है।
सौंदर्य, प्रेम और प्रगति के कवि अंचल (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’) के उपन्यासों में भी साम्यवादी चेतना का प्रकटीकरण है।
वन के मन में’ श्री योगेंद्र नाथ सिन्हा का दूसरा आंचलिक उपन्यास है जो सन् 1962 ई. में प्रकाशित हुआ। पुस्तकाकार छपने के पूर्व यह ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक छपा और लोकप्रिय हुआ।
श्री राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह, एम. पी. हिंदी साहित्य के लब्घप्रतिष्ठ कवि और समर्थ गद्यकार हैं। मानव-हृदय को रागात्मक अनुभूति से रससिक्त कर देना आपकी कविताओं की मूल विशेषता है। आपके द्वारा रचित पाँच काव्य-ग्रंथ हैं–
इतमीनान रखो, जिंदगी को जीने से मैं कतरा नहीं सकती; थोड़ी झुक जाऊँ यह भले संभव हो, पर टूट नहीं सकती। चौतरफी लड़ाई लड़ रही हूँ, यह बात तो तुमने बहुत नजदीक से देखी है–समाज की रूढ़ियों से लड़ाई, जमाने के तेवर से लड़ाई, नरक के घिनौने कीड़े से लड़ाई, अपने-आप से लड़ाई।
कसाव तथा ढिलाव के बीच की स्थिति में अवस्थित वीणा के तारों से झंकृत रागिनी के शुभ्र कल्लोल में किसी को समन्वयवाद का संदेश मिलता है, तो कोई प्रकृति के विचित्र विधान पर मुग्ध होता है। भावना अपनी होती है और आधार पुराना। कथानक यदि प्राचीन है, तो कवि की महत्ता इसमें है कि उसे प्राचीन रहते हुए भी आधुनिक बना दे।
‘राठौर राज प्रिथीराज री कही वेलि क्रिसन रुकमणी री’ डिंगल की प्रसिद्ध रचना है। ये वे ही इतिहास प्रसिद्ध पृथ्वीराज हैं जिन्होंने अकबर से संधि का प्रस्ताव करने पर महाराणा प्रताप को क्षोभपूर्ण पत्र लिखा था।