अश्क की एकांकीकला
‘अश्क’ के एकांकी कल्पना के व्योम में विहार करने वाले रूमानी कवि की स्वप्निल पृष्ठभूमि पर विनिर्मित नहीं हुए हैं, उनमें यथार्थवाद की ठोस अनुभूतियों, मानसिक विश्लेषण तथा अंतर्द्वंद्व का निदर्शन है।
‘अश्क’ के एकांकी कल्पना के व्योम में विहार करने वाले रूमानी कवि की स्वप्निल पृष्ठभूमि पर विनिर्मित नहीं हुए हैं, उनमें यथार्थवाद की ठोस अनुभूतियों, मानसिक विश्लेषण तथा अंतर्द्वंद्व का निदर्शन है।
छायावाद-युग ने महादेवी को जन्म दिया और महादेवी ने छायावाद को जीवन।
हिंदी काव्य के साथ जो दुर्व्यवहार पिछले वर्षों में हुआ उसका दुष्परिणाम यह निकला कि लोग केशव को भूल से गए और शिक्षाक्रम में हिंदी को स्थान मिला भी तो लोग उनकी बहुछंदी रचना रामचंद्रिका का ही अध्ययन-अध्यापन करते रहे।
प्राचीनता की पूजा और नवीनता को शक की नजर से देखना–यह भारतीय संस्कृति की अपनी विशेषता रही है।
मार्क्सवादी सामाजिक-आार्थिक सिद्धांत का जब काव्य अथवा साहित्य में प्रयोग किया जाता है, तब उसकी स्थिति बहुत कुछ असंगत और असाध्य-सी हो जाती है।
वर्तमान हिंदी आलोचना को कई वादों में विभक्त किया जा सकता है–रसवाद, प्रगतिवाद, यौनवाद, प्रशंसावाद, काव्यवाद, उद्धरणवाद और अंतत: आतंकवाद। इन वादों की एकांगिता से हिंदी-साहित्य की किस प्रकार अपार क्षति हो रही है इसे सुधी लेखक की लेखनी से ही देखिए–