आलोचना के नाम पर
वर्तमान हिंदी आलोचना को कई वादों में विभक्त किया जा सकता है–रसवाद, प्रगतिवाद, यौनवाद, प्रशंसावाद, काव्यवाद, उद्धरणवाद और अंतत: आतंकवाद। इन वादों की एकांगिता से हिंदी-साहित्य की किस प्रकार अपार क्षति हो रही है इसे सुधी लेखक की लेखनी से ही देखिए–