अपने समय की साक्षी गजलें

नई सदी की गजल अपना रूप रंग बदल रही है इसमें कोई संशय नहीं है। लेकिन गजल एक नाजुक विधा है। इस पर कोई भी बोध बोझ की तरह नहीं लादा जा सकता है। शे’र के पास दो पंक्तियों की सीमित जगह है लेकिन इन दो पंक्तियों तथा उसके शब्दों के बीच एक बड़ा स्पेस होता है,

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नये गजलकारों की प्रेरणा के स्रोत

हिंदी गजल के सिद्ध शायर ज्ञानप्रकाश विवेक एवं अनिरुद्ध सिन्हा इनकी गजलों की बुनावट, शिल्प एवं शैली के प्रति जितना संतोष व्यक्त करते हैं उतने ही आश्वस्त प्रसिद्ध शायर जहीर कुरैशी भी नजर आते हैं।

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समय की आवाज का प्रतिबिंब

‘जिंदगी की है कहानी न कोई मंजर है/इस तरफ कुछ भी निशानी न कोई मंजर है/किसको अपना मैं कहूँ किसको बेगाना कह दूँ/बस मुझे चोट है खानी ना कोई मंजर है।’

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विद्यावान गुनी अति चातुर

श्री हनुमान-चरित-मानस में एक ओर जहाँ मैनाक, मायाविनी सुरसा आदि से वार्तालाप के प्रसंग में श्री हनुमान जी की वाणी की विनयशीलता, लक्ष्यैकचक्षुता, कार्यसिद्धि की तत्परता आदि विशेषताओं की चर्चा की गई है वहीं दूसरी ओर जगत जननी माता जानकी से वार्तालाप के क्रम में उनके प्रत्येक अक्षर में दूतजनोचित निपुणता का भी दिग्दर्शन कराया गया है। श

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यह जीवन भी एक यात्रा है

बरसों बरसों पहले की यात्राएँ कवि स्मृति में जीवंत हैं और यही उसकी कविता यात्रा की पाथेय है। वह पहाड़ों के साथ, नदियों के साथ, पेड़ों के साथ यात्राएँ करता रहा है और इस यायावरी में इस समय की पटकथा लिखता रहा है।

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गजल में एक नया आस्वाद

आलोच्य पुस्तक की शीर्षक का निहितार्थ ठीक से उजागर हो सके, इसे ध्यान में रखकर द्विज जी ने, संग्रह में ‘हजारों सदियों का सारांश कुछ कथाएँ हैं’ शीर्षक से आठ शेर की एक रचना भी, लगभग आरंभ में ही शामिल की है।

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