समय की आवाज का प्रतिबिंब
‘जिंदगी की है कहानी न कोई मंजर है/इस तरफ कुछ भी निशानी न कोई मंजर है/किसको अपना मैं कहूँ किसको बेगाना कह दूँ/बस मुझे चोट है खानी ना कोई मंजर है।’
‘जिंदगी की है कहानी न कोई मंजर है/इस तरफ कुछ भी निशानी न कोई मंजर है/किसको अपना मैं कहूँ किसको बेगाना कह दूँ/बस मुझे चोट है खानी ना कोई मंजर है।’
श्री हनुमान-चरित-मानस में एक ओर जहाँ मैनाक, मायाविनी सुरसा आदि से वार्तालाप के प्रसंग में श्री हनुमान जी की वाणी की विनयशीलता, लक्ष्यैकचक्षुता, कार्यसिद्धि की तत्परता आदि विशेषताओं की चर्चा की गई है वहीं दूसरी ओर जगत जननी माता जानकी से वार्तालाप के क्रम में उनके प्रत्येक अक्षर में दूतजनोचित निपुणता का भी दिग्दर्शन कराया गया है। श
बरसों बरसों पहले की यात्राएँ कवि स्मृति में जीवंत हैं और यही उसकी कविता यात्रा की पाथेय है। वह पहाड़ों के साथ, नदियों के साथ, पेड़ों के साथ यात्राएँ करता रहा है और इस यायावरी में इस समय की पटकथा लिखता रहा है।
आलोच्य पुस्तक की शीर्षक का निहितार्थ ठीक से उजागर हो सके, इसे ध्यान में रखकर द्विज जी ने, संग्रह में ‘हजारों सदियों का सारांश कुछ कथाएँ हैं’ शीर्षक से आठ शेर की एक रचना भी, लगभग आरंभ में ही शामिल की है।
लघुकथा की लंबी यात्रा में समय-समय पर कुछ ऐसे लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है जिनसे न सिर्फ लगातार लघुकथाएँ लिख रहे हैं बल्कि लघुकथा समीक्षा के क्षेत्र में कुछ गंभीर और ठोस कार्य से इस विधा की गंभीरता को स्थापित करने में मदद मिली है।
युवा लेखिका वंदना जोशी का पहला कहानी संग्रह ‘नगर ढिंढोरा’ के नाम से प्रकाशित हुआ है, जिसमें विभिन्न भाव छवियों की ग्यारह कहानियाँ हैं।