जीवन-सौंदर्य की गजलें

गजल पहले भी बोलती थी और अब भी बोलती है। गजल पहले लुक-छिपकर किसी के खिलाफ कुछ बोलती थी, अब मुखर होकर कहती है।

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सहज भाषा में कठोर यथार्थ की गजलें

विजय कुमार स्वर्णकार एक ऐसे गजलकार हैं जिन्होंने गजल के रूप रंग को बिगाड़े बिना अपने समय के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विषयों को अपनी गजलों के साथ जोड़ा है।

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विषमता के शिकार नायकों की कथा

‘नेपथ्य के नायक’ सामाजिक न्याय और समता के लिए लड़ने वाले ऐसे 25 नायकों की जीवनी है, जिनको हमारे इतिहास लेखन में उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया।

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स्त्री मनोभाव की कविताएँ

सत्या शर्मा की कविताएँ अनुभव की उपज है जिसमें यथार्थ के साथ ही स्त्रियों की बेचैनी और स्वतंत्रता की अभिलाषा है।

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मनुष्यता को बचाने की आवाज

नीलोत्पल की कविताएँ मानवता की पक्षधर हैं। वह ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से सराबोर ‘जियो और जीने दो’ की हिमायत है।

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साहित्यिक परिदृश्य की पड़ताल

अगर आप समय के साहित्य, समाज को जानना चाहें–राधेश्याम तिवारी के कवि से मिलना चाहें तो ‘कोहरे में यात्रा’ जरूर पढ़ें।

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