समकालीन भारतीय साहित्य
संपादक बलराम के कुशल संपादन एवं परिश्रम से ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ का यह साफ-सुथरा अंक प्रशंसनीय बन पड़ा है।
संपादक बलराम के कुशल संपादन एवं परिश्रम से ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ का यह साफ-सुथरा अंक प्रशंसनीय बन पड़ा है।
‘एक ऐसी भी निर्भया’ उपन्यास नारी जीवन के दर्दनाक चित्र का अक्षर रूप है। लेखिका अपने सहज रूप में सामाजिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश जाहिर करनेवाली और पीड़ित, शोषित नारी के प्रति संवेदनशील एवं मानवीय मूल्यों के प्रति निष्ठा रखनेवाली हैं।
दर्जनों पुस्तकों के रययिता जियालाल आर्य का सद्यः प्रकाशित उपन्यास ‘क्रांतिजोती सावित्री फुले’ देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री फुले के चरित्र को औपन्यासिक शिल्प में ढालने का सफल प्रयास है। समीक्ष्य उपन्यास में ब्राह्मणों का शूद्रों और महिलाओं के लिए तालिबानी रूप दिखाया गया है।
संग्रह की कहानियाँ प्रायः घटना-प्रधान हैं और रचनाकार कथानुरूप परिवेश निर्मिति में पारंगत है। किस्सागोई इनकी खासियत है। कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जिनमें एक-दो पात्र नहीं, बल्कि पात्रों के समूह हैं और उस सामूहिकता में ही रचना अपने मकसद तक पहुँचने में कामयाब होती है।
संग्रह में सुरेश उनियाल की सभी कहानियाँ जीवन से जुड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भी, पक्ष से सीधे तादात्म्य स्थापित करती हैं। कहानियों की भाषा जमीनी है और अभिव्यक्ति सूझ-बूझ के साथ पाठक में विलय होने में समर्थ है।
प्रतिरोध की कविता राजनीति का फॉर्म नहीं बने इससे ये बच गए हैं। किसी तरह की यांत्रिकता से भी। कविता से प्रतिबद्धता का यही परिप्रेक्ष्य एक स्वीकार की तरह शिवनारायण की कविताओं का सौंदर्य है। प्रश्नाकुलता का सौंदर्य जो वर्तमान में कविता का चरित्र है।