स्त्री सृजन की आवाँ है

‘तुम्हें गलत साबित करना है उन सबको जो कहते हैं कि धीमी-धीमी आँच में ही लड़कियाँ सीझ जाती हैं तेज आँच की गंध उन्हें पसंद नहीं।’

और जानेस्त्री सृजन की आवाँ है

हास्य-व्यंग्य जगत में कोश की भूमिका

यह पुस्तक हिंदी हास्य-व्यंग्य क्षेत्र को सुगठित करने का विचारपरक प्रयास है। एक विस्तृत विषयफलक को समेटते हुए भी कोश निर्माण के मूलभूत सिद्धांतों का पूर्ण रूप से तिवारी जी ने अनुसरण किया है। प्रत्येक अध्याय में लेखक या कृति के आद्याक्षर के रूप में सूची का निर्माण किया गया है। क्रम संख्या, पृष्ठ संख्या, प्रकाशन काल, प्रकाशन केंद्र, विधा आदि पर पूरी सावधानी के साथ कार्य संपन्न किया गया है।

और जानेहास्य-व्यंग्य जगत में कोश की भूमिका

अपना-अपना द्वंद्व

छंद और द्वंद्व के बीच जी जा रही ज़िंदगी और अपने समय के बहुरुपिये के बीच जय श्रीवास्तव की कविताएँ सहनशीलता और संघर्ष का संबल देती हैं।

और जानेअपना-अपना द्वंद्व

पाल भसीन का रचना-संसार

‘शरद जुन्हाई बिछ गई, अन्हियारे के देश, तेरे चरणों का हुआ, जब-जब यहाँ प्रवेश, कर हस्ताक्षर धूप के, खिला गुलाबी रूप चले किरण दल पाटने, अंधकार के कूप।’

और जानेपाल भसीन का रचना-संसार

जनवादी सरोकार की मुलायम ग़ज़लें

समकालीन साहित्य के सामने संवेदनहीन यथार्थ की चुनौतियाँ कुछ विशेष रूप से प्रकट हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण है कथ्य की गतिहीनता। एक दृष्टि से अपरिपक्व शब्द, लय और छंद का लोप। आधुनिक समय में हमारा यह साहित्य हमें सीमित दायरे में सोचने के लिए विवश करता है। लेकिन अनिरुद्ध सिन्हा की ग़ज़लें हमें अपनी ओर आकर्षित कर पढ़ा ले जाती हैं। इनकी ग़ज़लों के कथ्य समकालीन तो हैं ही; छंद, लय और शब्दों की कसावट पाठक के व्यक्तित्व के अनुरूप उनके

और जानेजनवादी सरोकार की मुलायम ग़ज़लें

व्यंग्यालोचन के द्वार पर नई दस्तक

राष्ट्रपिता गाँधी जी ने असहमति की अभिव्यक्ति को रोकना एक स्वस्थ समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बताया था। प्रखर आलोचक एवं व्यंग्यालोचन के क्षेत्र में कई दशकों से एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में चर्चित डॉ. बालेन्दुशेखर तिवारी की नवीनतम कृति ‘व्यंग्यालोचन के पार-द्वार’ में भी किसी सीमा तक असहमति की अभिव्यक्ति को ही व्यंग्य की अंदरूनी शक्ति घोषित किया गया है। इसलिए पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है–‘भ्रष्टाचार का धनुष किसी से उठ नहीं रहा है, प्रहार की जयमाला निष्फल हो रही है। नारों की नदियाँ बनी हैं, वादों के नाव चल रहे हैं, अफवाहों की बयार बह रही है, अपराध की शीतलता सारे पर्यावरण को सुधार रही है। मानवता और आदर्श के सारे आचरण शब्दकोश में सजे हुए हैं।

और जानेव्यंग्यालोचन के द्वार पर नई दस्तक