भ्रष्ट व्यवस्था की उत्सवधर्मिता का आख्यान
सूखा पानी गाँव के ओलापीड़ित किसान राम प्रसाद ने कुएँ में रस्सी से लटककर आत्महत्या कर ली, ठीक उसी समय सरकारी अमले नगर उत्सव में व्यस्त थे।
सूखा पानी गाँव के ओलापीड़ित किसान राम प्रसाद ने कुएँ में रस्सी से लटककर आत्महत्या कर ली, ठीक उसी समय सरकारी अमले नगर उत्सव में व्यस्त थे।
मॉरिशस के प्रेमचंद अभिमन्यु अनत कहते हैं ‘शोषित मानव शोषण का आदी होकर उसे जीवन की स्वाभाविकता मान लेता है और उस लिजलिजेपन को संतोष के साथ जीता रहा है। लेखक उसके कानों में सिर्फ इतना ही कहता है कि जिसे वह भाग्य का लेख समझता है, वह कानून नहीं–उसे तोड़ना है। यह चेतना होती है, इसके बाद उपाय और सक्रियता आदमी की अपनी जिम्मेदारी होती है।’ आलोच्य उपन्यास ‘एक असमाप्त कथा’ की लेखिका रमा सिंह ने इसके तनुश्री, जगमोहन बड़ाईक तथा मास्टर काका ब्रह्मदेव यादव जैसे पात्रों के माध्यम से नक्सल बनने का कारण और मानवता क्षरण को दर्शाने में सफलता पाई है।
‘जसोदा एक्सप्रेस’ सुषमा मुनीन्द्र की कहानियों का संग्रह है, जिसमें जीवन के विविध इंद्रधनुषी रंग हैं, तो भावनाओं की भीनी खुशबू, रिश्तों के खट्टे-मीठे स्वाद और समाज में व्याप्त असामाजिकता की कड़वाहट भी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘जसोदा एक्सप्रेस’ जीवन में व्याप्त बहरंगे भावों की सवारी को लेकर चलती कहानियों का अलबम मानवीय एवं पारिवारिक रिश्तों के बिखरते मोती को एक सूत्र में पिरोने का सुंदर प्रयत्न सुषमा मुनीन्द्र की कहानियों में दीख पड़ता है। वास्तव में सुषमा मुनीन्द्र की कहानियाँ शहरों में नए बसते कसबाई समाज की संवेदना से गहरे जोड़ती हैं।
उत्तर आधुनिकता और बाजारवाद के इस अधम दौर में ऋता शुक्ल की कहानियाँ ग्रामगंधी संस्कृति के अजेय शिलाखंडों से अठखेलियाँ करती किसी पहाड़ी नदी की स्वाभाविक तरंगों को साकार करती हैं। ग्रामभित्तिक जमीन पर सांस्कृतिक वैभव के साथ नारी विमर्श की अंतरंग छवियाँ उकेरने वाली ऐसी कहानियों की प्रजाति इधर अनुपलब्ध होती जा रही हैं। चित्रा मुद्गल, ऋता शुक्ल, नासिरा शर्मा, सूर्यबाला जैसी कुछ महिला कहानीकारों के यहाँ यह वैभव अभी भी सुरक्षित है, तभी उनकी कहानियाँ जैसे एक लुप्तप्राय लोक की यात्रा कराती हैं।
निस्संदेह हरेराम त्रिपाठी चेतन सुकवि हैं। उनके पास भाव हैं, विचार हैं, संपदा है, अभिव्यक्ति की कला है। लेकिन इतने भर से कवि की तमाम मुश्किलों पर विराम नहीं लग जाता।
कमल कुमार के नए कविता-संग्रह ‘घर और औरत’ की अधिकतर कविताओं में ‘अंधेरा’ या उससे जुड़े बिंब और संदर्भ साभिप्राय हैं। ‘अंधेरा’ अनेक व्यंजनाओं को समेटे हुए हैं और प्रायः सभी का सीधा संबंध नारी मात्र की तकलीफ और यातना से है।