हिंदी की प्रगति और विश्व हिंदी सम्मेलन
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 1975 से अब तक आयोजित इस ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 1975 से अब तक आयोजित इस ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अब कोई साधारण जन रोज बदल रहे समय, रोज बदल रही तकनीक, रोज बदल रही जीवन-शैली में खुद को कहाँ पर एडजस्ट करे
विशुद्धानंद की ‘माथे माटी चंदन’ जो भोजपुरी भाषा में तेरह कड़ियों की नाट्य धारावाहिक पुस्तक है, पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र में आतीं
संपदा पांडेय कृत ‘भारतीय नारी: सृजन और व्यंग्य-कर्म’ पुस्तक संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की कनिष्ठ शोधवृत्ति के लिए तैयार
‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’ समीक्षक एवं नवगीतकार राधेश्याम बंधु की नवगीत की आलोचना की यह तीसरी पुस्तक है।
सूखा पानी गाँव के ओलापीड़ित किसान राम प्रसाद ने कुएँ में रस्सी से लटककर आत्महत्या कर ली, ठीक उसी समय सरकारी अमले नगर उत्सव में व्यस्त थे।