जनवादी सरोकार की मुलायम ग़ज़लें

समकालीन साहित्य के सामने संवेदनहीन यथार्थ की चुनौतियाँ कुछ विशेष रूप से प्रकट हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण है कथ्य की गतिहीनता। एक दृष्टि से अपरिपक्व शब्द, लय और छंद का लोप। आधुनिक समय में हमारा यह साहित्य हमें सीमित दायरे में सोचने के लिए विवश करता है। लेकिन अनिरुद्ध सिन्हा की ग़ज़लें हमें अपनी ओर आकर्षित कर पढ़ा ले जाती हैं। इनकी ग़ज़लों के कथ्य समकालीन तो हैं ही; छंद, लय और शब्दों की कसावट पाठक के व्यक्तित्व के अनुरूप उनके

और जानेजनवादी सरोकार की मुलायम ग़ज़लें

व्यंग्यालोचन के द्वार पर नई दस्तक

राष्ट्रपिता गाँधी जी ने असहमति की अभिव्यक्ति को रोकना एक स्वस्थ समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बताया था। प्रखर आलोचक एवं व्यंग्यालोचन के क्षेत्र में कई दशकों से एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में चर्चित डॉ. बालेन्दुशेखर तिवारी की नवीनतम कृति ‘व्यंग्यालोचन के पार-द्वार’ में भी किसी सीमा तक असहमति की अभिव्यक्ति को ही व्यंग्य की अंदरूनी शक्ति घोषित किया गया है। इसलिए पुस्तक के प्रथम अध्याय में कहा गया है–‘भ्रष्टाचार का धनुष किसी से उठ नहीं रहा है, प्रहार की जयमाला निष्फल हो रही है। नारों की नदियाँ बनी हैं, वादों के नाव चल रहे हैं, अफवाहों की बयार बह रही है, अपराध की शीतलता सारे पर्यावरण को सुधार रही है। मानवता और आदर्श के सारे आचरण शब्दकोश में सजे हुए हैं।

और जानेव्यंग्यालोचन के द्वार पर नई दस्तक

हिंदी की प्रगति और विश्व हिंदी सम्मेलन

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 1975 से अब तक आयोजित इस ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ ने भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

और जानेहिंदी की प्रगति और विश्व हिंदी सम्मेलन

आम आदमी के संघर्ष की गाथा

अब कोई साधारण जन रोज बदल रहे समय, रोज बदल रही तकनीक, रोज बदल रही जीवन-शैली में खुद को कहाँ पर एडजस्ट करे

और जानेआम आदमी के संघर्ष की गाथा

स्त्री-उत्थान की गाथा

विशुद्धानंद की ‘माथे माटी चंदन’ जो भोजपुरी भाषा में तेरह कड़ियों की नाट्य धारावाहिक पुस्तक है, पूर्णतः ग्रामीण क्षेत्र में आतीं

और जानेस्त्री-उत्थान की गाथा

व्यंग्य की तिरछी पगडंडियों पर

संपदा पांडेय कृत ‘भारतीय नारी: सृजन और व्यंग्य-कर्म’ पुस्तक संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की कनिष्ठ शोधवृत्ति के लिए तैयार

और जानेव्यंग्य की तिरछी पगडंडियों पर