यथार्थ की परतें खोलती ग़ज़लें
मधुवेश द्वारा रचित ग़ज़लों का पहला संग्रह ‘क़दम-क़दम पर चैराहे’ सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ की तहों की खोज-ख़बर लेने वाली ग़ज़लों को सामने लाता है
मधुवेश द्वारा रचित ग़ज़लों का पहला संग्रह ‘क़दम-क़दम पर चैराहे’ सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ की तहों की खोज-ख़बर लेने वाली ग़ज़लों को सामने लाता है
तेजेंद्र शर्मा हिंदी के एक ऐसे प्रवासी कहानीकार हैं जो दो देशों के बीच वैश्विक स्तर पर आ रहे बदलावों के बीच जीवन की ऊष्मा, संवेदना और मानवीय रिश्तों की अंतरतहों तक दृष्टि डालते हुए उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कथा के रूप में सामने लाते हैं। तेजेंद्र शर्मा की कहानियों में सामाजिक विषयों की विविधता है। उनकी कहानियों के केंद्र में परिवार है खासकर मध्यमवर्गीय परिवार। पारिवारिक संबंधों का, मानवीय इच्छाओं का आख्यान करती इन कहानियों में भाषा सहज और प्रवाहमयी है।
किसी भी कवि के लिए युग के दबावों को अनदेखा करना संभव नहीं होता। उसकी चिंता के केंद्र में समय, समाज, सत्ता, जीवन-मूल्य होते हैं। वैसे भी कविता के सरोकार मूलतः मनुष्य के सरोकार ही होते हैं और कवि को अपने समय की विपरीत परिस्थितियों का अहसास रहता है। हालाँकि यह बात उन कवियों या रचनाकारों पर लागू नहीं होती जो जीवन की सामाजिकता को नहीं, व्यक्तिगत नजरिये में यकीन करते हैं।
तेजेंद्र शर्मा शब्दों का इस्तेमाल कहानी को विकसित करने में स्प्रिंगबोर्ड की तरह करते हैं। इससे कहानी में स्मार्टनेस पैदा होती है और पाठक की रुचि बनी रहती है।
सामाजिक संरचना के बनते-बिगड़ते स्वरूप के लिए जिम्मेदार कारकों तथा स्थितियों-परिस्थितियों की परख और पड़ताल आज के जो भी कथाकार सहज भाव से कर रहे हैं, उनमें शंभु पी. सिंह ने भी अपनी उपस्थिति ‘जनता दरबार’ के जरिए दर्ज की है। जन साधारण के जीवन पर आधारित कथा सृजन की समृद्ध परंपरा को विस्तार देने में शंभु पी. सिंह एक स्पष्ट दृष्टिबोध के साथ नजर आते हैं।
धारा बहती चली जा रही है–साहित्य की धारा वेग से आगे बढ़ती जा रही है। कदम-कदम पर इसे मूल्यगत संघर्षों से सामना करना पड़ रहा है