अवसर की पहचान

कई बार ऐसा होता है कि हम जो चाहते हैं, वह नहीं होता। बल्कि अक्सर ऐसा ही होता है। हम चाहते कुछ हैं और होता कुछ और है–चाहने से कुछ कम या फिर ज्यादा। हमारे चाहने की अपनी सीमा है, जिसके इर्द-गिर्द ही हम डोलते रहते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि हम अपनी सीमा के विस्तार से अंजान सीमित दायरे में ही अपने लिए कुछ चाहते हैं, जबकि वक्त-विधाता के हाथों मिलना बहुत ज्यादा होता है। हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं। इसलिए अवसर को पहचान पाने का विवेक स्थिर करना बहुत जरूरी होता है। जीवन की दिशा उसी पर निर्भर होती है। दिशा सही हो, तो जीवन में सफलता दर सफलता मिलती चली जाती है। सफलता का अमीरी-गरीबी से कोई संबंध नहीं होता।

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साहित्य का समाजशास्त्र

उड़िया-बंगला के लेखकों को किसी क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के गढ़ने-रचने की प्रेरणा पर्ल बक से मिली, ऐसा माना जाता है। उन्नीसवीं शती के आरंभ में अँग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी आदि भाषाओं के लेखक अपने-अपने क्षेत्र के देशकाल का सामाजिक-सांस्कृतिक आख्यान प्रस्तुत कर रहे थे।

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तेजेंद्र शर्मा का सृजन-संसार

कथाकार तेजेंद्र शर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व इतना सम्मोहक है कि हम उनसे दूर रहना भी चाहें, तो वे हमारी ओर बाँहें पसार मुक्तकंठ गा उठते हैं–‘जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है/यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा है!’ कथाकार तेजेंद्र शर्मा के सृजन-संसार को ‘नई धारा’ का सलाम!

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भारत में किसानी

भारतीय रिजर्व बैंक के 80 साल पूरे होने पर मुंबई में आयोजित स्थापना दिवस समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बैंकों को किसानों को कर्ज देने में उदारता बरतनी चाहिए।

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पत्रकार या मजदूर!

पत्रकारों पर मजदूरों के लिए बनाए गए कानून लागू हैं या नहीं, यह एक प्रश्न उठा है। मजदूरों के लिए जो कानून बने हैं, वे उन्हें कुछ सुरक्षाएँ और सुविधाएँ देते हैं–वे बिना कारण के हटाए नहीं जा सकते, ऐसा करने पर उनकी क्षतिपूर्ति करनी पड़ेगी

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जयंति ते सुकृतिना रससिद्धा: कवीश्वरा:

आचार्य विनोबा के भूदान-यज्ञ को छोड़कर, ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिसमें जनता के लिए कुछ दिलचस्पी हो। किंतु इस भूदान-यज्ञ में भी राजनीति, नहीं, कूटनीति, घुस रही है।

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