वह साहित्यिक तपस्वी : मृत्युशय्या पर!!
आज पटना के टी.बी. अस्पताल के जिस बिस्तरे पर हिंदी-साहित्य के हमारे महान तपस्वी, बिहार के हिंदी लेखकों की पिछली पुस्त के स्रष्टा, ऋषियों के जीवन की परंपरा के अंतिम प्रतीक, आचार्य शिवपूजन सहाय जी रखे गए हैं
आज पटना के टी.बी. अस्पताल के जिस बिस्तरे पर हिंदी-साहित्य के हमारे महान तपस्वी, बिहार के हिंदी लेखकों की पिछली पुस्त के स्रष्टा, ऋषियों के जीवन की परंपरा के अंतिम प्रतीक, आचार्य शिवपूजन सहाय जी रखे गए हैं
प्रयोगवाद इत्यादि अन्य नामों से जो कोशिशें चल रही हैं वे मात्र टेकनिक की नूतनता से संबंध रखती हैं, विषयवस्तु से उसका बड़ा हल्का-सा संबंध है।
आधुनिक भारत का सर्वश्रेष्ठ चित्रशिल्पी हमारे बीच से उठ गया। एक-एक कर हमारे दिग्गज हमें छोड़ते जा रहे हैं।
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के दफ्तर पर मुहरबंद ताला पड़ा हुआ है। उसकी संपत्ति की सुरक्षा के लिए एक रिसीवर की नियुक्ति हुई है।
नाम का तो यह गणतंत्र है, किंतु मालूम होता है, हमारी सरकार ने अँग्रेजी नौकरशाही के सब ऐब विरासत में ले लिए हैं।
क्या कभी हमने यह सोचा है कि हिंदी में उनके साहित्यकारों की जीवनियाँ कितनी कम हैं? क्या तमाशा है, जिन्होंने संसार को अपनी कृतियों से अमरता दी, उनकी कृतियों की कहानी कह कर कोई अपने को अमर करने को तैयार नहीं!