हमें यह कहना है!

पिछले दिनों, हिंदी-संसार ने दो जयंतियाँ मनाई–पं. माखनलाल जी चतुर्वेदी ‘भारतीय आत्मा’ की हीरक जयंती और युगकवि श्री सुमित्रानंदनपंत की स्वर्ण जयंती। चतुर्वेदी जी और पंत जी हिंदी-कविता के दो दौरों के ही नहीं, उसकी दो प्रवृतियों के भी प्रतीक हैं!

और जानेहमें यह कहना है!

हमें यह कहना है!

गया में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का इक्कीसवाँ अधिवेशन सानंद समाप्त हुआ। प्रांत के, प्रांत के बाहर के भी, साहित्यिक जुटे–भाषण हुए, कविता हुई, अभिनय हुआ।

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हमें यह कहना है!

लीजिए, यह ‘नई धारा’। मैं इसके संबंध में क्या कहूँ? अपने तीस वर्षों के पत्रकार-जीवन की परिणति के रूप में इसे हिंदी-संसार के समक्ष पेश करना चाहता हूँ। किंतु, पहले अंक में ही कई स्थाई शीर्षक छूट गए; कई उपयोगी लेख छूट गए। समय और स्थान की खींचातानी। इसके बावजूद यह जो कुछ है, आप लोगों की सेवा में है।

और जानेहमें यह कहना है!