जाति और रंग

एक दिन वह था कि हर गोरा, सम्राट् का जोड़ा बन कर मूँछों पर ताव दिए इठलाता रहा हमारे यहाँ–‘सम्राट भाविया पूजि सबारे’।

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स्वर्गीय ‘मीर’ साहब की पत्नी

‘मीर’ साहब ने हिंदी-सेवा का अखंड व्रत लेकर जो घोर पाप किया था, उसका प्रायश्चित उनकी अनाथा वृद्ध पत्नी कर रही हैं।

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अपनी अपनी व्यवस्था

याद आ रहा है हमें आज वह दिन जब हमने मुनि की रेती के पड़ोस में स्वर्गाश्रम के किनारे केवल कोपीन पहने दो ऐसे अँग्रेजों के दर्शन पाए जो हिमालय की तराई में जाने कितने साल से योग साधना की ऊँचाइयों को, दुनिया से मुँह मोड़, हल करने में लवलीन थे।

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सेवाग्राम

सुबह का वक्त था। पूर्व में से काली कंबली वाले साधुओं की एक कतार, काले बादलों के रूप में, तारों की ज्योति में अपना रास्ता टटोलती हुई, पश्चिम की तरफ जाती दिखाई दी।

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