तीन पीढ़ियों की–एक साहित्यिक कड़ी का अवसान

शीला जी साहित्यकार नहीं थीं लेकिन तीन पीढ़ियों की साहित्यिक विरासत की गवाह थीं। साहित्य और साहित्यकारों के प्रति उनके मन में असीम आदर का भाव रहता।

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समाजसेविका शीला सिन्हा

श्रीमती शीला सिन्हा एक कुशल गृहणी, आदर्श पत्नी, गौरवमयी माता, निष्ठावान समाज सेविका और सर्वजन हिताय मानव स्वरूपा थीं।

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उड़ि गयो फुलवा रहि गयो वास…

मेरी दृष्टि में श्रीमती शीला सिन्हा ने एक भरपूर अनुकरणीय जीवन जीया और स्वयं को उन बंधनों और सोच से मुक्त रखा जो आत्मा के विस्तार को कुंठित करते हैं।

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साहित्य-संस्कृति में सनी-पगी एक गृहिणी

उस परिसर के कोने-कोने में साहित्य की गंध फैलाने में सहायक बनीं। समाज सेवा के क्षेत्र में तो अद्वितीय थीं। शीला दी हमारी यादों में बनी रहेंगी!

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