उड़ि गयो फुलवा रहि गयो वास…
मेरी दृष्टि में श्रीमती शीला सिन्हा ने एक भरपूर अनुकरणीय जीवन जीया और स्वयं को उन बंधनों और सोच से मुक्त रखा जो आत्मा के विस्तार को कुंठित करते हैं।
मेरी दृष्टि में श्रीमती शीला सिन्हा ने एक भरपूर अनुकरणीय जीवन जीया और स्वयं को उन बंधनों और सोच से मुक्त रखा जो आत्मा के विस्तार को कुंठित करते हैं।
उस परिसर के कोने-कोने में साहित्य की गंध फैलाने में सहायक बनीं। समाज सेवा के क्षेत्र में तो अद्वितीय थीं। शीला दी हमारी यादों में बनी रहेंगी!
वर्ष 2020 जाते-जाते यह एक दुखद संयोग हुआ कि एक साथ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तीन अलग-अलग प्रदेशों, हिंदी, मराठी और गुजराती के, अलग-अलग तीन संपादकों जो कोरोना महामारी के शिकार हो गए।
सैनिकों ने सबको उस विशेष रेलगाड़ी में बिठा लिया। स्टेशन से गाड़ी चली तो सब ने राहत की साँस ली। पर आउटर सिग्नल तक जाकर ही गाड़ी रुक गई। रुकी नहीं थी, रोक दी गई थी। पाकिस्तान पुलिस ने यह कहकर गाड़ी रोक दी थी कि ग़ैर-सैनिक गाड़ी में नहीं जा सकते। भारतीय सैनिक हिंदुओं को वहाँ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और पाकिस्तानी पुलिस को लग रहा था पता नहीं हिंदू अपने साथ क्या-कुछ समेट कर ले जा रहे हैं।
’ उस समय अपनी दोनों रोती बहनों पर मुझे बेतरह तरस आ रहा था। रो मैं भी रही थी लेकिन ज़ाहिर था कि मुख्य अपराधी बड़ी, ‘समझदार’ बहनें ही मानी जा रही थीं।उस दिन का अपने अंदर उबलता गुस्सा मुझे अभी तक याद है, ज़्यादा अपनी बहनों की बेबसी और लाचारी पर कि उन्हें सफ़ाई देने का मौक़ा क्यों नहीं दिया जा रहा? आपलोगों ने ही तो सिखाई है हमें, बड़ों से मुँह न लगने और जवाब न देने जैसी बातें। किदवई साहब हमें ज़बरदस्ती ले गए और नुक्कड़ तक के बदले टाउनहॉल तक घुमा लाए तो हमारी ग़लती?
नया करने की प्रवृति के कारण ही मधुकर एक पात्र होते हुए भी तटस्थ दर्शक की भूमिका में दिखाई देते हैं।