जो कोरोना के गाल में समा गए–दलित संपादक-लेखक

वर्ष 2020 जाते-जाते यह एक दुखद संयोग हुआ कि एक साथ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तीन अलग-अलग प्रदेशों, हिंदी, मराठी और गुजराती के, अलग-अलग तीन संपादकों जो कोरोना महामारी के शिकार हो गए।

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मधुकर गंगाधर की साहित्य-साधना

नया करने की प्रवृति के कारण ही मधुकर एक पात्र होते हुए भी तटस्थ दर्शक की भूमिका में दिखाई देते हैं।

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नंदकिशोर नवल एक राजनीतिक आलोचक

डॉ. नवल ने लिखा–‘हिंदी का क्षेत्र बहुत विस्तृत है, लेकिन अभी उसमें आलोचना की एक भी उल्लेख योग्य पत्रिका प्रकाशित नहीं हो रही

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फणीश्वरनाथ रेणु मानव मुक्ति के कथाकार

रेणु की कहानियों का परिवेश और प्रकृति दर्शाता है कि ‘रेणु’ में बचपन से ही कहानी गढ़ने की कला थी।

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रेणु का लोकराग

रेणु के लेखन में बिहार झलकता है। वहाँ का लोकजीवन, लोक-भाषा, लोक-संस्कृति सबका रूपायन रेणु के कथा साहित्य की विशेषता है

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