कलम, आज उनकी जय बोल
रामधारी सिंह दिनकर प्रखर और संवेदनशील कवि थे। उनके काव्य व्यक्तित्व का निर्माण स्वाधीनता संग्राम के घात-प्रतिघात के बीच हुआ था। उस समय देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष निरंतर बढ़ रहा था। समय ऐसा था जहाँ वायवीय निरुद्देश्य गीतों की गुंजाइश न थी। इसीलिए वे समय की विडंबनाओं से उलझते रहे। उनका समूचा लेखन पराधीनता के विरोध, शोषण पर प्रहार तथा समता के समर्थन की पहचान है। अपने युग का तीखा बोध था उन्हें। वे कहते थे मैं रंदा लेकर काठ को चिकना करने नहीं आया हूँ। मेरे हाथ में कुल्हाड़ी है, जिससे मैं जड़ता की लकड़ियों को फाड़ रहा हूँ।