जो तुम ना मानो मुझे अपना

तेजेंद्र शर्मा पर कुछ न लिखने का मलाल उन्हें बहुत दिनों तक सालता रहा और जब मौका मिला तो उन्होंने उसे जाया भी नहीं किया। अपने हिंदी साहित्य के इतिहास के तीसरे खंड में अपनी सारी भड़ास निकालते हुए तेजेंद्र शर्मा पर न केवल लिखा बल्कि जम कर लिखा। ऐसे तेजस्वी तेजेंद्र जी से अचानक एक कार्यक्रम में मुलाकात हो जाने को मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ।

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दिल से संसद तक तेजेंद्र ही तेजेंद्र

तेजेंद्र शर्मा–यह नाम मस्तिष्क में आते ही मानो हलचल सी होने लगती है। उसकी याद के साथ साथ उससे मिलने की बेचैनी मन में बढ़ने लगती है। उसकी सुंदर, गहरे बेधने वाली आँखें और होंठों की भोली मुस्कान नटखट कान्हा की तर्ज पर ही बनी है। द्वापर के उस महानायक से यह हमारा नायक कुछ मिलता जुलता सा लगता है। याद नहीं कब से उसे जानता हूँ, लगता है कई युग बीत गए हैं।

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 प्रभु जी, तुम अमृत हम मोची
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प्रभु जी, तुम अमृत हम मोची

पटना से करीब चालीस किलोमीटर दूर बिहटा थाना का अमहरा ग्राम स्वाधीनता आंदोलन के समय प्रायः सुर्खियों में रहता था। यह ग्राम सवर्ण बाहुल्य है। राजनीतिक तौर पर यहाँ के लोग समाजवादी विचारधारा से प्रभावित रहे हैं। देश की आबादी के लिए गाँव के प्रमुख लोग सर्वप्रकारेण समर्पित थे जिनमें रामजी सिंह, श्यामनंदन बाबा, रामनाथ शर्मा आदि अग्रगण्य थे।

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जीवन का साहित्यानुवाद करता एक कवि

मैं जब-जब कीर्तिनारायण मिश्र की रचनाशीलता को देखता हूँ तो सुखद विस्मय होता है। किसी रचनाकार में लगभग छह दशक की सतत रचनाशीलता देखी जाये तो यही कहा जा सकता है कि रचनात्मक प्रतिबद्धता ही उसमें नहीं है, बल्कि रचनात्मकता उसका मूल स्वभाव है।

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केदारनाथ सिंह की अंतर्यात्रा का अलबम

कहाँ से शुरू करूँ, केदार जी के साथ की प्रभाव-यात्रा। मुझे 10 वर्ष पहले का वह दिन और दृश्य अब तक याद है, जब मैं दिल्ली के साकेत स्थित उनके आवास पर उनसे पहली बार मिला था।  इसके पूर्व उन्हें कभी देखा न था।

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जैनेंद्र–जिनको मैं जान सका

मैंने प्रेमचंद को पढ़ा परंतु जैनेंद्र को मुझे समझना पड़ा। ‘त्यागपत्र’ मेरे लिए गीता रहस्य बन गया। इस गुत्थी को जितना सुलझाना चाहा, मैं उतना ही उलझता गया। भगवती प्रसाद वाजपेयी हमारे यहाँ आए तो मैंने उनसे ‘त्यागपत्र’ के बारे में चर्चा की। वह आदत के अनुसार कुछ देर तक सोचते रहे। फिर वह बोले, “जैनेंद्र विचारक हैं, दार्शनिक बनते हैं। इसकी छाप उसके साहित्य पर है इसलिए वहाँ भी उसका पाठक उलझ जाता है।” परंतु वह ‘त्यागपत्र’ पर कुछ नहीं कह सके।

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