सत्यनारायण शर्मा : स्मृति एक असंभव संभव की

सत्यनारायण शर्मा राँची के ही हैं। वह पश्चिम जर्मनी में प्रोफेसर हैं। इन दोनों ही सूचनाओं का मुझ पर जादू जैसा प्रभाव पड़ा। उस समय तक मुझे केवल इतना ही पता था कि राँची में एक लेखक हैं, जिनका नाम राधाकृष्ण है, जिनकी कहानी ‘वरदान का फेर’ हम छात्रों को उस समय पढ़ाई भी जाती थी। राधाकृष्ण ‘घोष बोस बनर्जी चटर्जी’ के नाम से भी लिखा करते थे।

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 कभी मनुहार, कभी फटकार!
Jawaharlal Nehru with Villagers in Rajasthan_Wikimedia Commons

कभी मनुहार, कभी फटकार!

पं. जवाहर लाल नेहरू के पहलेपहल दर्शन मुझे 1937 के चुनाव में आरा में हुए थे। मैं स्कूल का छात्र था और घर में सबसे छोटा था, इसलिए साइकिल से अकेला सड़क पर जाना या किसी सभा-सोसाइटी में जाना बुजुर्गों ने मना कर रखा था।

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 वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!
वह विस्मयकारी व्यक्तित्व

वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!

‘एडवानटेज इन’–चिल्लाते हुए मास्टर साहब ने जोर से कहा–“देखिए, ध्यान से खेलिए, गेम हमारा होकर रहेगा।” मैंने बल्ला सँभालते हुए कसकर बॉल को बेस लाइन पर गिराया, कोई उसे लौटा न सका और गेम हमारा होकर रहा।

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भाषाविद्–डॉ. राजेंद्र प्रसाद

उनकी शिक्षा-दीक्षा फ़ारसी से आरंभ हुई थी। लगभग दस वर्ष की आयु तक वे यह शिक्षा, अपने जन्म-ग्राम जीरादेई में घर पर ही प्राप्त करते रहे। उन्होंने लिखा है कि अँग्रेज़ी-अध्ययन के लिए छपरा जाने के पहले करीमा, मामकीमा, खालकबारी खुशहाल-सीमिया, दस्तूरुलसीमिया, गुलिस्ताँ–और बोस्ताँ वे पढ़ चुके थे।

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विरल व्यक्तित्व : शिवजी

आचार्य शिवपूजन सहाय, जिन्हें शिवजी के नाम से भी लोग जानते रहे हैं, साहित्य-जगत के यथानाम शिव और सत्य-सुंदर के मध्य में सुशोभित-समवेत, संगम की भाँति ही स्वच्छ-निर्मल–‘सत्य-शिव-सुंदर’ की प्रत्यक्ष परिभाषा थे।

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पं. द्वारका प्रसाद मिश्र

चश्मे के भीतर बुद्धि और चिंतन की दोहरी दीप्ति से चमकती तीक्ष्ण भेदक आँखें, हार्दिकता और गहरे आत्मविश्वास की आभा से प्रसन्न निर्दोष मुख जो बात-बात में जीवन-व्यापिनी संस्कारशीलता और व्यक्ति-वैशिष्ट्य का प्रेरक प्रबोध प्रदान करता है, आगंतुक के मन में कर्मठता, त्याग, चरित्र और देश-पूजा का उत्कट उल्लास जाग्रत करने वाली, संघर्षों में तप-तप कर अधिकाधिक जीवन-मुक्त होने वाली विद्रोह-शिखा-सी ‘डायनमिक’ मुस्कान–ये तीन मिश्रजी के व्यक्तित्व की आकर्षक विशेषताएँ हैं जो बड़े-से-बड़े विरोधी और संशयवादी को एक बार को उनके निकट लाकर उसे दूर नहीं जाने देतीं।

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