जब जब देखा लोहा देखा
बाबूजी (स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय) के पंचतत्व में विलीन होने के उपरांत उनकी अस्थियाँ बिनते समय एक कठोर तप्त वस्तु के हाथ से स्पर्श होते ही माथा ठनका।
बाबूजी (स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय) के पंचतत्व में विलीन होने के उपरांत उनकी अस्थियाँ बिनते समय एक कठोर तप्त वस्तु के हाथ से स्पर्श होते ही माथा ठनका।
प्रेमचंद की यह उक्ति कि बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ति होती है, को मैं बाबूजी ;स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय के अंतिम दिनों में उनमें ही शब्दशः चरितार्थ होते हुए देखी हूँ।
साहित्य के स्वर्णयुग के प्रवर्तक प्रातस्मरणीय स्वर्गीय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मशती के इस शुभ अवसर पर हम अपनी आंतरिक श्रद्धा उस महामनीषी की पुनीत स्मृति को निवेदित करते हैं।