कुछ पूजा के आयोजन-सा होने लगता
कुछ पूजा के आयोजन-सा होने लगता जब मेरे मन में प्यार देवता-सा चुप-चुप आने लगता मन मंदिर होने लगता ऐसा रूपक सजने लगता
कुछ पूजा के आयोजन-सा होने लगता जब मेरे मन में प्यार देवता-सा चुप-चुप आने लगता मन मंदिर होने लगता ऐसा रूपक सजने लगता
विश्व मेरे, बह रही है काल-धारा अनवरत, जिसका नहीं कोई किनारा
विश्व मेरे, यह नया मेरा सबेरा! मिट गया मानस क्षितिज का क्षीण घेरा!
विश्व मेरे, स्वप्न मैं बुनता नया हूँ, आँसुओं के अग्नि-कण चुनता नया हूँ
विश्व मेरे, मैं तुम्हारा हो गया हूँ, मैं मिटा निज को तुम्हीं में खो गया हूँ
विश्व मेरे, मैं मिटा अस्तित्व अपना, चाहता हूँ भूल जाना यह तड़पना।