स्वाभिमान की रोटी

नगर में एक समाज-सेवी सेठ हैं–ईश्वरचंद सेठ! इन्होंने एक बड़ा-सा प्रतिष्ठान चला रखा है। पहले छोटा-मोटा व्यापार था। उस समय महज एक आदमी वहाँ काम करता था। आज कई लोग जुड़ गए हैं। लेकिन सबसे पुराना विश्वासी मुरलीधर ही है। वह सेठ जी का सभी काम बड़ी तत्परता पूर्वक करता है। फिर भी, उसे गालियाँ सुननी पड़ती है। एक समय था जब सेठ जी ग्राहकों के लिए तरसते थे। उस समय भी एक वफादार व्यक्ति की तरह मुरलीधर ही उनके साथ रहता। ग्राहकों को जुटाने का हर संभव प्रयास करता।

और जानेस्वाभिमान की रोटी

अँगुली हिलाओ, पंजे चलाओ

पकरू ने ‘बड़का बाबा’ की मूर्ति पर फूलों के साथ थोड़ी दारू छिड़की और अपना तीर कमान सामने भागते खरगोश पर तान छोड़ दिया।

और जानेअँगुली हिलाओ, पंजे चलाओ

अगनहिंडोला (उपन्यास अंश)

आने वाले मजलूमों में एक मारवाड़ से आया क्षत्रिय जय सिंह था। मारवाड़ इलाके में अकाल पड़ गया था। एक-एक काफिले बनाकर पूरब की ओर निकल आये थे, जय सिंह ने रोहतास में शरण पाई थी। उन्हें खेत मिला था फसलें उगाने को।

और जानेअगनहिंडोला (उपन्यास अंश)