प्रेम विवाह में प्रेम
प्रेम विवाह के दर्द के मारे बेचारे आजकल सारी दुनिया को समझाते फिरते हैं कि प्रेम भले ही कर लेना पर प्रेम विवाह भूल कर भी मत करना, साला न प्रेम बचता है न ही विवाह। जिंदगी नरक हो जाती है, आदि आदि।
प्रेम विवाह के दर्द के मारे बेचारे आजकल सारी दुनिया को समझाते फिरते हैं कि प्रेम भले ही कर लेना पर प्रेम विवाह भूल कर भी मत करना, साला न प्रेम बचता है न ही विवाह। जिंदगी नरक हो जाती है, आदि आदि।
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता समझा जाता है। कहा गया है–अतिथि देवो भव।
हर तरफ स्त्री आदर्श बनने की होड़ में लगी हुई हैं–आदर्श माँ, बहन, बेटी, बहू, दोस्त, सास, पत्नी व प्रेमिका। मेरी नजर में तो सबसे अनूठा रिश्ता होता है सास और बहू का।
उनका प्रेम अब ज्ञानमार्गी हो चुका है। उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल चुके हैं। यानी दिमाग के दरवाजे खुले रहते हैं और दिल के बंद।
क्या नेता गण लोगों से पैर छुआने के लिए ही मंत्री बनते हैं और इसी को जनसेवा का नाम देते हैं?
बाइक पर चलते समय अथवा कार चालन के समय हमारे प्रोफेसर साहब सचेत रहते हैं कि राह में बातचीत के योग्य कोई सुपात्र न छूट जाए।