बिच्छू के दंश से घोंघा सड़क पर
बिच्छू–पैसा और पावर जब तक आंदोलन की राह में नहीं आते, तभी तक वे अपनी असली जंग लड़ते हैं। इनके आते ही आंदोलन के सर्वे-सर्वाओं की आपसी जंग शुरू हो जाती है। खामियाजा मेरे जैसा निर्दोष ही भुगतता है।
बिच्छू–पैसा और पावर जब तक आंदोलन की राह में नहीं आते, तभी तक वे अपनी असली जंग लड़ते हैं। इनके आते ही आंदोलन के सर्वे-सर्वाओं की आपसी जंग शुरू हो जाती है। खामियाजा मेरे जैसा निर्दोष ही भुगतता है।
प्रेम विवाह के दर्द के मारे बेचारे आजकल सारी दुनिया को समझाते फिरते हैं कि प्रेम भले ही कर लेना पर प्रेम विवाह भूल कर भी मत करना, साला न प्रेम बचता है न ही विवाह। जिंदगी नरक हो जाती है, आदि आदि।
भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता समझा जाता है। कहा गया है–अतिथि देवो भव।
हर तरफ स्त्री आदर्श बनने की होड़ में लगी हुई हैं–आदर्श माँ, बहन, बेटी, बहू, दोस्त, सास, पत्नी व प्रेमिका। मेरी नजर में तो सबसे अनूठा रिश्ता होता है सास और बहू का।
उनका प्रेम अब ज्ञानमार्गी हो चुका है। उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल चुके हैं। यानी दिमाग के दरवाजे खुले रहते हैं और दिल के बंद।
क्या नेता गण लोगों से पैर छुआने के लिए ही मंत्री बनते हैं और इसी को जनसेवा का नाम देते हैं?