काम कला की नगरी : खजुराहो
गुप्तकालीन और चंदेल कालीन मूर्तिशिल्प के अनुपम आगार गढ़ने के लिए शिल्पियों ने पाषाण को मोम की तरह तराशा है।
गुप्तकालीन और चंदेल कालीन मूर्तिशिल्प के अनुपम आगार गढ़ने के लिए शिल्पियों ने पाषाण को मोम की तरह तराशा है।
‘नहीं हम मंडी नहीं जाएँगे खलिहान से उठते हुए कहते हैं दाने जाएँगे तो फिर लौटकर नहीं आएँगे जाते-जाते कहते जाते हैं दाने।’
उबुद बाली का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल है। जो पारंपरिक आभूषण, पत्थर की मूर्तियों, ग्लास वर्क, बाटिक और बाँस एवं लकड़ी के खिलौने के लिए विख्यात हैं।
उस समय छोटी थी। समझती नहीं थी, आखिर शेक्सपियर हीरो है या रंगकर्मी। लेकिन हाँ, कानों में उनका नाम बचपन से पड़ गया था।
ये आज के संपादक का संकट है। गद्य कविता के नाम पर जो कुछ लिखा जा रहा है। वह प्रायः नीरस और अबूझ है।
दिल्ली से काठमांडू की कुल डेढ़ घंटे की विमान यात्रा एक दूसरे से बतियाते और नेपाल के मोहक पर्वतों के अभिभूत करते सौंदर्य को सराहते, कैसे पूरी हुई, पता भी न चला। क्षितिज पर कहीं गले मिलती शोख बदलियाँ थीं, कहीं धुनकी रूई के तूदों में इकट्ठा हुए ढेरों-ढेर बादल और दूर पहाड़ों की चोटियों को ढकती बर्फ की चुन्नटों वाली चूनर, जिसकी किनारियाँ गुलाबी रंग से रंगने लगी थीं। मुझे अपने कश्मीर के बर्फीले ताजों वाले बुज़ुर्ग पहाड़ याद आए। एसोसिएशन ऑफ़ आइडियाज! प्रकृति भी तो स्मृतियों पर दस्तक देती, जोड़ने का काम करती है।