एक सैर ओड़िशा की

आज मैं ओड़िसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में हूँ, जहाँ किसी समय में सात हजार मंदिर हुआ करते थे और जिन्हें सात सौ वर्षों में बनाया गया था। लेकिन अब 600 मंदिर ही बचे हैं जो कि अपने आप में अद्भुत हैं। दोपहर के भोजन के बाद हम राजकीय अतिथिशाला से निकल पड़े इन गुफाओं के दर्शन करने। भुवनेश्वर की चौड़ी सड़कों और सीधे-सादे शहर के दिल में उतरना एक सुखद अहसास रहा। सबसे पहले हम जा पहुँचे शहर को अपनी गोद में लिए उन पहाड़ियों के पास जहाँ की चट्टानें अपने आगंतुकों का स्वागत करने को बेचैन थीं।

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सोखोदेवरा : एक तीर्थ से गुजरते हुए

लोकनायक जयप्रकाश उनके उस अधूरे कार्य को पूरा करने में आजीवन लगे रहे। इसलिए भारतीय जन-मानस में जयप्रकाश दूसरे गाँधी के रूप में दिखाई पड़ते हैं। मैं खुद को भी उन लाखों-करोड़ों लोगों में मानता हूँ, जो गाँधी और जयप्रकाश के प्रति वास्तविक श्रद्धा रखते हैं। इसलिए जीवन में जब कभी भी मौका मिला, साबरमती, वर्धा, सेवाग्राम आदि जगहों में गाँधी और जयप्रकाश की उस मनोवृति का दर्शन करने जाता रहता हूँ, जिसने रचनात्मक कार्यकर्ताओं की एक समृद्ध टोली तैयार की थी।

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क्रूगर नेशनल पार्क की यात्रा

अगर आपको वन्य प्राणियों में दिलचस्पी हो तो आप वहाँ स्थित क्रूगर नेशनल पार्क कभी भी मिस नहीं कर सकते। (वैसे भी अफ्रीका अपने बिग 5 जानवरों के लिए जाना जाता है, भैंसा, हाथी, शेर, चीता और गैंडा)। एक तो यह पार्क लगभग 19000 वर्ग किमी में स्थित है जिसे पूरी तरह से देखने में आपको कई हफ्ते भी लग सकते हैं।

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मेरी मिस्र यात्रा

5000 साल का इतिहास समेटे मिस्र में विश्व धरोहर का दर्जा पाए मुझे जाने कब से अपनी ओर खींच रहे थे और इसे दृढ़ स्वप्न की तरह अपने दिल में तब से संजोए रखा है जब मेरी मुलाकात स्विट्जरलैंड के एंगलबर्ग शहर में पहाड़ पर स्थित होटल टेरेस में काहिरा की रहने वाली प्रसिद्ध पुरातत्वविद और मिस्र के पिरामिडों पर अनुसंधान कर रही डॉ. जोआन फ्लेचर से हुई।

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हूरों के देश का सफर–(मेरी अफगानिस्तान यात्रा)

मेरा विदेश सेवा में आने का एक और कारण था–विभिन्न देशों की यात्रा करना। इसलिए जब दिल्ली में ट्रेनिंग के दौरान पता चला कि हमारी अफगानिस्तान यात्रा होने वाली है तो रोमांच हो आया।

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भारत का स्वीट्जरलैंड : खज्जियार

ऊँची-ऊँची चीड़ और देवदार की डालियों को आकाश छूते हुए देख कर मेरा कवि मन अक्सर कह उठता था ‘ऐ आसमाँ, तेरी निगहबानी में, हमने मुद्दत से पलकें नहीं झपकाएँ हैं।’

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