दिल्ली प्रवास के छः दिन
डायरी के पन्ने पलटने शुरू किए, तो मेरे सामने दिल्ली-प्रवास (16 से 21 दिसंबर, 2013) के किस्से खुलने लगे। उन किस्सों में ऐसा उलझा, कि जिस मुद्दे पर लिखना चाहता था, वह धरा रह गया। अब सोचता हूँ कि इस बार डायरी के इन्हीं कुछ पन्नों को आपके सामने रखूँ। कई बार ऐसा होता है कि अत्यंत सामान्य-सी दिखने वाली चीजों में भी कुछ खास चीजें दिख जाती हैं।