बदरीनाथ
भूतपूर्व रावल साहब बतला रहे थे कि मैंने यहाँ सूर्य की एक खंडित मूर्ति देखी थी किंतु अब वह दिखाई नहीं देती। जान पड़ता है यात्रियों के साथ पुरानी मूर्तियों के व्यापारी भी आते रहे हैं, जिनके कारण एक भी खंडित मूर्ति बचने नहीं पाई।
भूतपूर्व रावल साहब बतला रहे थे कि मैंने यहाँ सूर्य की एक खंडित मूर्ति देखी थी किंतु अब वह दिखाई नहीं देती। जान पड़ता है यात्रियों के साथ पुरानी मूर्तियों के व्यापारी भी आते रहे हैं, जिनके कारण एक भी खंडित मूर्ति बचने नहीं पाई।
सुनते हैं, साहित्यिकों में ‘प्रसाद’ बड़े ही प्रवास-भीरु थे। पर जब से मैं जोशी कॉलेज में हिंदी का अध्यापक हुआ, तब से कुछ यों कोल्हू के बैल वाला चक्कर शुरू हुआ कि यदि आज ‘प्रसाद’ जीवित होते, तो उन्हें भी मेरे घर घुस्सपन का लोहा मानना पड़ता। लेकिन, मेरे पूर्व जन्म का घुमक्कड़-संस्कार बिल्कुल मर नहीं सका।
हाँ, तो यह मांडव है–शाही महलों का खंडहर। सैकड़ों नहीं, हजारों वर्ष बीत जाएँ और उन वर्षों पर भी कई युग दिन बनकर निकल जाएँ, लेकिन जब तक ये खंडहर हैं, तब तक इनके निर्माताओं की महान महात्वाकाँक्षा यहाँ व्यक्त रहेंगी और उनके प्रभाव से कोई भी पथिक अपने आपको मुक्त नहीं पा सकेगा।
“मेरी आँखों के सामने था–गौरीशंकर का वही शृंग। इस समय भी उसने अपनी बाँहें दो चोटियों के कंधों पर फैला रखी थीं। वे दोनों माँ-बेटी सी दिखती थीं। उन्हें पहचानने में मैं भूल नहीं कर सकता था। वहाँ दाहिनी ओर वाली ही थी–मेरी डिरी डोलमा!”