अफ्रीका

अफ्रिका एक ऐसी रचना है, जिसमें महाकवि ने बिल्कुल पिछड़े महादेश अफ्रिका के निर्दोष, निर्बोध आदिमवासियों के ऊपर होनेवाले तथाकथित सभ्य पाश्चात्य जगत के अमानुषिक व्यवहार के प्रति अपना संवेदनशील विरोध प्रगट किया था

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श्रद्धा-निवेदन

साहित्य के स्वर्णयुग के प्रवर्तक प्रातस्मरणीय स्वर्गीय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मशती के इस शुभ अवसर पर हम अपनी आंतरिक श्रद्धा उस महामनीषी की पुनीत स्मृति को निवेदित करते हैं।

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बहती धारा : चतुर्मुखी कसौटी

धारा बहती चली जा रही है–साहित्य की धारा वेग से आगे बढ़ती जा रही है। कदम-कदम पर इसे मूल्यगत संघर्षों से सामना करना पड़ रहा है

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भाषाविद्–डॉ. राजेंद्र प्रसाद

उनकी शिक्षा-दीक्षा फ़ारसी से आरंभ हुई थी। लगभग दस वर्ष की आयु तक वे यह शिक्षा, अपने जन्म-ग्राम जीरादेई में घर पर ही प्राप्त करते रहे। उन्होंने लिखा है कि अँग्रेज़ी-अध्ययन के लिए छपरा जाने के पहले करीमा, मामकीमा, खालकबारी खुशहाल-सीमिया, दस्तूरुलसीमिया, गुलिस्ताँ–और बोस्ताँ वे पढ़ चुके थे।

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प्रायश्चित्त

कृष्ण कुमार बाबू कचहरी से आए, तो ऐसे थके हुए थे, जैसे उनमें जान ही नहीं थी। न दिल का पता चलता था और न दिमाग ठीक से काम करता था। घर में आते ही कमरे में घुस गए। शेरवानी उतार कर बड़ी बेदिली से एक ओर डाल दी, और पलंग पर लेट गए।

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दो नीली चमकीली आँखें

भादो की काली अंधेरी रात–बादल झूम-झूम कर बरस रहे हैं। सर्वत्र गंभीर नीरवता छाई है। सभी फ्लैटों की खिड़कियाँ बंद हैं

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