पं. द्वारका प्रसाद मिश्र

चश्मे के भीतर बुद्धि और चिंतन की दोहरी दीप्ति से चमकती तीक्ष्ण भेदक आँखें, हार्दिकता और गहरे आत्मविश्वास की आभा से प्रसन्न निर्दोष मुख जो बात-बात में जीवन-व्यापिनी संस्कारशीलता और व्यक्ति-वैशिष्ट्य का प्रेरक प्रबोध प्रदान करता है, आगंतुक के मन में कर्मठता, त्याग, चरित्र और देश-पूजा का उत्कट उल्लास जाग्रत करने वाली, संघर्षों में तप-तप कर अधिकाधिक जीवन-मुक्त होने वाली विद्रोह-शिखा-सी ‘डायनमिक’ मुस्कान–ये तीन मिश्रजी के व्यक्तित्व की आकर्षक विशेषताएँ हैं जो बड़े-से-बड़े विरोधी और संशयवादी को एक बार को उनके निकट लाकर उसे दूर नहीं जाने देतीं।

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‘उर्वशी’—एक दृष्टि

कसाव तथा ढिलाव के बीच की स्थिति में अवस्थित वीणा के तारों से झंकृत रागिनी के शुभ्र कल्लोल में किसी को समन्वयवाद का संदेश मिलता है, तो कोई प्रकृति के विचित्र विधान पर मुग्ध होता है। भावना अपनी होती है और आधार पुराना। कथानक यदि प्राचीन है, तो कवि की महत्ता इसमें है कि उसे प्राचीन रहते हुए भी आधुनिक बना दे।

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