मौसमों की मार की शिद्दत

मौसमों की मार की शिद्दत भुला कर उड़ गया इक परिंदा हौसलों के पर लगा कर उड़ गयाचाँदनी ने दिल टटोला हो गया उसको यकीं बादलों के रथ पे चंदा दिल चुराकर उड़ गयादुख का बादल सर पे मँडराता रहा हर पल मगर सुख का बादल एक पल को पास आकर उड़ गया

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बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला!

बुझे असंख्य दीप पर बुझी न ज्योति शृंखला! अनेक कण उठे मिले कि शृंग तुंग हो गया।

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