बादल और वियोग
बादल घिरे आकाश में, तुम हो न मेरे पास में; मेरे लिए दो-दो तरफ बरसात के सामान हैं।
बादल घिरे आकाश में, तुम हो न मेरे पास में; मेरे लिए दो-दो तरफ बरसात के सामान हैं।
दार्शनिक भूमिका पर आदर्शवाद अनेकता में एकता देखने का प्रयत्न करता है। वह विशृंखलता में शृंखला, निराशा में आशा, दुख में सुख-समाधान की प्रतिष्ठा करने का उद्देश्य रखता है।
मेरे नयनों में लहराती आधी-आधी रात गए तक– जाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है!
“मैं समझ गया कि हों न हों ये सत्यनाराण जी हैं; पर फिर भी परिचय-प्रदान के लिए पं. मुकुंदराम को इशारा कर ही रहा था कि आपने तुरंत अपना मौखिक ‘विज़िटिंग कार्ड’ हृदयहारी टोन में स्वयं पढ़ सुनाया–