साहित्य में आदर्श और यथार्थ

दार्शनिक भूमिका पर आदर्शवाद अनेकता में एकता देखने का प्रयत्न करता है। वह विशृंखलता में शृंखला, निराशा में आशा, दुख में सुख-समाधान की प्रतिष्ठा करने का उद्देश्य रखता है।

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जाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है!

मेरे नयनों में लहराती आधी-आधी रात गए तक– जाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है!

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“नवल नागरी नेह रत”

“मैं समझ गया कि हों न हों ये सत्यनाराण जी हैं; पर फिर भी परिचय-प्रदान के लिए पं. मुकुंदराम को इशारा कर ही रहा था कि आपने तुरंत अपना मौखिक ‘विज़िटिंग कार्ड’ हृदयहारी टोन में स्वयं पढ़ सुनाया–

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