बरसात
काले काले मेघ तुम्हारे–बिजली की ज्वाला मेरी यह मादक बरसात तुम्हारी–लपटों की माला मेरी
काले काले मेघ तुम्हारे–बिजली की ज्वाला मेरी यह मादक बरसात तुम्हारी–लपटों की माला मेरी
हमारे भारतीय जीवन ने आरंभ से ही दर्शन को व्यवहारिक जीवन का आधार माना है। हमारी संस्कृति के उदय के आरंभ-काल से ही जिस देश ने दर्शन और धर्म का साम्य स्थापित रखा, उसके जीवन में कर्म-सिद्धांत का प्राबल्य स्वाभाविक था।
“...जब बंबई जाऊँगा तो कोलाबा में प्यार के भाव पूछ और अपनी जेब देख प्यार खरीदूँगा।”
वामदेव, तुम ब्रह्मचारी हो, तपस्वी हो। तुमने अपनी जिंदगी की बागडोर जिस रास्ते से मोड़ दी है, वह मुझसे बहुत दूर है। मैं देवदासी हूँ, नर्तकी हूँ, औरत हूँ।
संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी जगा बैठा है और, टेलिप्रिंटर पर अक्षर उगे जा रहे हैं।