उलझी-कड़ियाँ
उसकी चमकती आँखों ने वृद्धा के चेहरे की एक-एक सिकुड़न पोछ डाली, वह उलझ गई विचारों की कड़ियों में
आकाशवाणी !
नाम का तो यह गणतंत्र है, किंतु मालूम होता है, हमारी सरकार ने अँग्रेजी नौकरशाही के सब ऐब विरासत में ले लिए हैं।
भागो मत, दुनिया को बदलो!
मानव ही तो इस दुनिया का इतिहास बदलता आया है
बलिपथ के गीत
जब राष्ट्रोत्थान की भावना दिनोंदिन अपना व्यापक रूप धारण करती जा रही थी, उन दिनों भी ‘मिलिंद’ मिलिंद था। वह कभी अकोला में अध्ययन करता था, तो कभी पूना के तिलक विद्यापीठ की परीक्षा देता था।
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