पावस और लोकगीत

भारतीय ग्राम्य जीवन सदा से संगीतमय रहा है। कर्ममय ग्राम्यजीवन में भी आघात-व्याघात, प्रेम-विरह, सुख-दुख के अनुभवों के स्रोत छंदबद्ध हो कर निकलते हैं।

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कौन होइहैं गतिया

“दूर हट, कुलक्षणी! आखिर तूने छू दिया न मेरी पूजा की आसनी। आचमनी का पानी भी नापाक हुआ और भोग की मिठाइयाँ भी।”

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शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण

शरतचंद्र का पहला परिचय मुझे उनकी जिस रचना द्वारा मिला था वह था उनका सबसे नीरस उपन्यास–‘पल्ली-समाज’।

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