पावस और लोकगीत
भारतीय ग्राम्य जीवन सदा से संगीतमय रहा है। कर्ममय ग्राम्यजीवन में भी आघात-व्याघात, प्रेम-विरह, सुख-दुख के अनुभवों के स्रोत छंदबद्ध हो कर निकलते हैं।
भारतीय ग्राम्य जीवन सदा से संगीतमय रहा है। कर्ममय ग्राम्यजीवन में भी आघात-व्याघात, प्रेम-विरह, सुख-दुख के अनुभवों के स्रोत छंदबद्ध हो कर निकलते हैं।
मिट्टी का आँगन, मिट्टी का घर, मिट्टी की चाकी मिट्टी सनी कर्मरत करतलियाँ मेहदी से आँकी
“दूर हट, कुलक्षणी! आखिर तूने छू दिया न मेरी पूजा की आसनी। आचमनी का पानी भी नापाक हुआ और भोग की मिठाइयाँ भी।”
शरतचंद्र का पहला परिचय मुझे उनकी जिस रचना द्वारा मिला था वह था उनका सबसे नीरस उपन्यास–‘पल्ली-समाज’।