शंकर विजय
जिस ओर वह जाता था, लोगों की पद-धूलि का मेघाडंबर घिर आता था, मानव-कंठों का निनाद गूँज उठता था, तूफान-सा आ जाता था, पर इनके बीच उसका ज्योतिर्मय अंतर उसी तरह अविकृत रहता था
जिस ओर वह जाता था, लोगों की पद-धूलि का मेघाडंबर घिर आता था, मानव-कंठों का निनाद गूँज उठता था, तूफान-सा आ जाता था, पर इनके बीच उसका ज्योतिर्मय अंतर उसी तरह अविकृत रहता था
क्या कभी हमने यह सोचा है कि हिंदी में उनके साहित्यकारों की जीवनियाँ कितनी कम हैं? क्या तमाशा है, जिन्होंने संसार को अपनी कृतियों से अमरता दी, उनकी कृतियों की कहानी कह कर कोई अपने को अमर करने को तैयार नहीं!
सूफी मार्ग की अंतिम मंजिल प्रेम और मारिफ (ज्ञान) हैं, जिनके द्वारा साधक परमात्मा के दर्शन करता है और अंत में उसके साथ एकमेक हो जाता है।
बीत गए जो दिन, उनका है आँसू ही आभार! सखि, यह जीवन का व्यापार!
उस दिन की ट्रेन-यात्रा में आराम से बेंचों पर बैठकर खुली खिड़की से प्राकृतिक दृश्यों का उपभोग करने का अवसर यात्रियों को नहीं मिल पाया था। भीड़, सो भी भयानक भीड़।
संसार की सृष्टि के बाद भगवान के सामने प्रश्न उठा, हर एक प्राणी को कितने वर्ष की आयु दे दी जाए? उसने पहले यह सोचा कि, सभी प्राणियों को समान वर्ष की आयु दे दी जाए। इसके बाद उसके सामने सबसे पहले गधा आ गया।