नई वर्षा-नया जीवन

बरसात क्या आ गई गाँव में नया जीवन आ गया है। कोई टाट के थैले की तिकोन ‘घोमची’ ओढ़ कर और कोई अपने शरीर पर के कुरते और बंडी को भी उतार कर, बरसते पानी मैं अपने-अपने काम में संलग्न हो उठे हैं।

और जानेनई वर्षा-नया जीवन

पानी

मंदाकिनी नौकर दाई के दु:ख से बेदम हो उठी थी। नौकर तो उसके कभी था ही नहीं। बेचारी विधवा थी, गाँव से अपने खेत की उपज मँगा लेती थी।

और जानेपानी

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

अपने रूप और वेष दोनों में वे इतने अधिक राष्ट्रीय हैं की भीड़ में मिल जाने पर शीघ्र ही खोज नहीं निकाले जा सकते।

और जानेराष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

नरनाहर निराला

“जिस समय रवींद्र का घोड़ा बंगाल से छूटा तो उसकी रास थामने की हिम्मत किसी में नहीं थी। लेकिन मैंने ही उस घोड़े को थाम लिया।...हमारा यह जो रंग है वह असल रंग नहीं। यह तो धूप में काला हो गया है।...इसका, बहुत लंबा हिसाब-किताब है।”

और जानेनरनाहर निराला

हमें यह कहना है!

भारत-सरकार ने दिल्ली में देश के साहित्यिकों की जो सभा बुलाई थी, वह एक अभिनंदनीय घटना थी। स्वतंत्र भारत की सरकार देश के चहुँमुखी विकास में साहित्य को भी स्थान देती है, इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है। किंतु, इस सभा पर शुरू से ही नौकरशाही की छाप थी। साहित्यिकों का चुनाव सरकारी ढंग पर हुआ।

और जानेहमें यह कहना है!

गाँधीवादी अर्थव्यवस्था

“अतएव महानुमाप-उत्पादन के सस्तापन का तर्क कोई मूल्य नहीं रखता। यहाँ कम परिव्यय दूसरों मदों के उन शोषणों के कारण है, जिनका भार न्याय दृष्टि से निर्माणी-स्वामियों पर पड़ना चाहिए था। इस दृष्टि से इसे चोरी किए गए पदार्थों की बिक्री ही समझना चाहिए।”

और जानेगाँधीवादी अर्थव्यवस्था