मेरी कोटा-यात्रा (भ्रमण)
सुनते हैं, साहित्यिकों में ‘प्रसाद’ बड़े ही प्रवास-भीरु थे। पर जब से मैं जोशी कॉलेज में हिंदी का अध्यापक हुआ, तब से कुछ यों कोल्हू के बैल वाला चक्कर शुरू हुआ कि यदि आज ‘प्रसाद’ जीवित होते, तो उन्हें भी मेरे घर घुस्सपन का लोहा मानना पड़ता। लेकिन, मेरे पूर्व जन्म का घुमक्कड़-संस्कार बिल्कुल मर नहीं सका।