जागरण

जग पड़ी हूँ चेतना में– स्वप्न के मधुमय निलय से उतर कर चुपचाप आई मैं हृदय में प्यास लेकर जग पड़ीं तब हैं अचानक स्वर लहरियाँ वेदना में। गीत के मधु संज पर इक, सो रहे थे प्राण मेरे, वे, सखी; अब नींद तज कर जग पड़े हैं आज धीरे सत्य की इक प्रेरणा में। वे मधुर से पल सुकोमल खो चुके हैं मधुरता सब प्राण ने जिनको दुलारा वे मदिर घड़ियाँ ही मेरी हैं पड़ी अवहेलना में!

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छत्तीसगढ़ के पर्व और लोकगीत

छत्तीसगढ़ की गरीब भोली-भाली निरक्षर जनता त्यौहारों को अत्यंत महत्त्व देती है। यही कारण है कि उनका गरीब जीवन शहरों के स्वर्गीय जीवन से भी अधिक आनंदमय होता है।

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काव्य और मंत्र

काव्य और मंत्र दोनों की ही भित्ति, आश्रय-आधार है वाक्य,...वाक्य का वजन जब अधिक हो जाता है, वह चाहे कितना ही क्यों न हो, तब वह काव्य की कोटि में चला जाता है। और वाक्य का वजन जब संपूर्ण रूप से वाक्य के आश्रयी का वजन हो जाता है तब वह बन जाता है मंत्र!

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नए लेखक : नए विषय

प्रयोगवाद इत्यादि अन्य नामों से जो कोशिशें चल रही हैं वे मात्र टेकनिक की नूतनता से संबंध रखती हैं, विषयवस्तु से उसका बड़ा हल्का-सा संबंध है।

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