शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण (तीसरी कड़ी)
उस वर्ष (1923) रायटर ने यह समाचार प्रचारित कर दिया कि इस बार का साहित्य संबंधी नोबेल पुरस्कार किसी भारतीय लेखक को मिलने वाला है।
उस वर्ष (1923) रायटर ने यह समाचार प्रचारित कर दिया कि इस बार का साहित्य संबंधी नोबेल पुरस्कार किसी भारतीय लेखक को मिलने वाला है।
किसकी ध्वनि कानों में आई लगता है कोई समीप आ
थाई लोग कला के बड़े प्रेमी हैं। उनके जीवन से यह सत्य स्वयं प्रकट होता है। सुरुचि और व्यवस्था इनके जीवन के अंग बन गए हैं।
हे युवक सँभालो तुम इसको आती जो आज नई धारा। सुन लो कानो से जो इसका गाती जय गान सर्वहारा॥
बदला बदला सा लगता है धरती-नभ का कोना-कोना। हरि से घन, राधा-सी बिजली का अदृश्य है रास सलोना।
गत एक वर्ष के अंदर यह विचार और भी दृढ़ हो गया है कि निर्बलों का देवता ‘राम’ है, बलशालियों की देवी नियति–और नियति मनमौजी है, तरंगी है।