शिवदान सिंह बनाम राजकमल
संपादक और प्रकाशक का संबंध कैसा हो? इस प्रश्न के साथ अनेक प्रश्न उठते हैं–क्या प्रकाशक को यह अधिकार है कि वह जब चाहे संपादक को निकाल बाहर कर दे?
संपादक और प्रकाशक का संबंध कैसा हो? इस प्रश्न के साथ अनेक प्रश्न उठते हैं–क्या प्रकाशक को यह अधिकार है कि वह जब चाहे संपादक को निकाल बाहर कर दे?
सुरशिल्पी भले हो न हो किंतु स्वरशिल्पी होना तो उनके लिए आवश्यक था। चारण और वंदीजन, जो कवियों की रचनाएँ पढ़कर सुनाया करते थे अथवा जो लोग रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाओं को गाकर श्रोताओं में विस्मययुक्त भक्ति की भावना भरा करते थे
अँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ। खुद अपनी नज़र से गिरा जा रहा हूँ।।
कण-कण में है मूर्ति तुम्हारी, किरण-किरण में हास तुम्हारा
आज पटना के टी.बी. अस्पताल के जिस बिस्तरे पर हिंदी-साहित्य के हमारे महान तपस्वी, बिहार के हिंदी लेखकों की पिछली पुस्त के स्रष्टा, ऋषियों के जीवन की परंपरा के अंतिम प्रतीक, आचार्य शिवपूजन सहाय जी रखे गए हैं
एक योद्धा-सा चला तू, संत बन कर मर गया । अग्नि-ज्वाला-सा उठा तू, फूल होकर झड़ गया ।