बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं
बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।
बोलो, क्या गाऊँ गीत आज ? कण-कण में जलती जागी हैं छाती कराहती है सब की, इंसान आज का बागी है।
कुछ दिन हुए, इच्छा हुई थी, अपनी आत्मकथा लिखूँ और उसका नाम रख दिया था, बाढ़ का बेटा!
बंबई से पहले तो अवश्य ही योरोप का सुनहला स्वप्न मुझे अपनी ओर खींच रहा था, पर ज्योंही हम मसावा पहुँचे थे कि प्रवासी इतालवियों के एक बड़े जत्थे के कारण मेरे मन की अँधियारी मिट गई
जब से पूज्य विनोबा जी ने भूदान-यज्ञ का श्रीगणेश किया है तब से आंदोलन के विभिन्न पक्षों से संबंध रखने वाले सैकड़ो प्रश्न इस संबंध में उठ चुके हैं।