रवींद्र साहित्य में नारी
जन्म से मृत्यु तक; सुख में, दुख में; हर्ष में, विषाद में, हास्य में, रुदन में सर्वदा किसी-न-किसी रूप में नारी के साथ प्राणीमात्र का संबंध बना ही रहता है।
जन्म से मृत्यु तक; सुख में, दुख में; हर्ष में, विषाद में, हास्य में, रुदन में सर्वदा किसी-न-किसी रूप में नारी के साथ प्राणीमात्र का संबंध बना ही रहता है।
दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे बस इसी तरह तुम रहो सामने मेरे
मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे पलकों के तारों पर मन के सातों स्वर मुखर हुए जाते,
‘ग़ालिब’ क़लम की ज़बान से बातें करने लगे और ख़तों के आने को यार दोस्तों, सगे-संबंधियों और शागिर्दों का आना समझने लगे।
कश्मीर का मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता। हमारे कितने मित्र जिन्होंने विदेश का भी भ्रमण किया है, कहते थे कि कश्मीर की शोभा स्विट्जरलैंड की पहाड़ी से भी अनुपम है।