अपनी-अपनी तौर
“ऐ लो, माँ काली की पूजा तो कभी की हो चुकी, सारा कलकत्ता ही उमड़ पड़ा था उस अवसर पर। यह क्या फिर ले उठे तुम?”
“ऐ लो, माँ काली की पूजा तो कभी की हो चुकी, सारा कलकत्ता ही उमड़ पड़ा था उस अवसर पर। यह क्या फिर ले उठे तुम?”
कला का प्रकाशन आंतरिक तथा बाह्य आधारों पर आश्रित है। उसका आंतरिक आधार कला की मौलिक प्रेरणा है, और उसके वाह्य आधार कला के माध्यम या उपादना होते हैं।
आज से तीन सौ वर्ष से अधिक हुए, जब शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज की यादगार में विश्व का आश्चर्य ताजमहल निर्मित किया था।
फूल की चिंता करे क्या, शूल चुभते जा रहे हैं? मुस्कराते अधर दल पर
इन ‘वादों’ की प्रवृत्ति हममें प्रतिहिंसा की भावना जागरुक करती है जो कला और साहित्य के कलाकार और साहित्यकार को कोसों दूर हटा दे सकती है।
पुजारी की आँख खुली! घबराई आँखों से चारों तरफ देखा! कुछ नहीं! सब तो ठीक था। शयन-कक्ष का द्वार बंद था। शमा मधुर प्रकाश बिखेर रही थी। “कुछ नही! भ्रम है मेरा!” पुजारी ने अपने को संतोष देते हुए करवट बदली!